भेंट लिफाफों गुलदस्तों की
दुनिया है थोथे रिश्तों की
तोलें सिर्फ तराजू लेकर
यारी भी पुश्तों पुश्तों की
सत्ता चलती है बस्ती में
चोर उचक्कों अलमस्तों की
भोग रहा कन्धों पर पीड़ा
बचपन बोझीले बस्तों की
लूटा ऐ टी ऍम शहर में
खोली पोल पुलिस गश्तों की
बरदी बत्ती बेबस लगतीं
बदहालत है चौरस्तों की
'भारद्वाज' हुआ है दुबला
चिंता में मासिक किश्तों की
चंद्रभान भरद्वाज
2 comments:
भेंट लिफाफों गुलदस्तों की
दुनिया है थोथे रिश्तों की
वाह ………हर बार की तरह शानदार गज़ल्।
आदरणीय चंद्रभान भारद्वाज जी
प्रणाम !
सादर सस्नेहाभिवादन !
वाह ! तुलसी बाबा की ज़मीन पर नये , अलग प्रकार के क़ाफ़ियों को ले'कर ख़ूबसूरत ग़ज़ल बुनी है आपने … बधाई !
भेंट लिफाफों गुलदस्तों की
दुनिया है थोथे रिश्तों की
शानदार मत्ले के साथ रवां-दवां ग़ज़ल !
भोग रहा कन्धों पर पीड़ा
बचपन ; बोझीले बस्तों की
जीवन की सच्चाइयों से जुड़ी तमाम बातें आपकी ग़ज़लों में होती हैं …
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
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