Wednesday, May 18, 2011

दुनिया है थोथे रिश्तों की

भेंट लिफाफों गुलदस्तों की 
दुनिया है थोथे रिश्तों की 

तोलें सिर्फ तराजू लेकर 
यारी भी पुश्तों पुश्तों की 

सत्ता चलती है बस्ती में 
चोर उचक्कों अलमस्तों की 

भोग रहा कन्धों पर पीड़ा 
बचपन बोझीले बस्तों की 

लूटा ऐ टी ऍम शहर में 
खोली पोल पुलिस गश्तों की 

बरदी  बत्ती बेबस लगतीं 
बदहालत है चौरस्तों की 

'भारद्वाज'  हुआ है दुबला 
चिंता में मासिक किश्तों की 

चंद्रभान भरद्वाज



2 comments:

vandana gupta said...

भेंट लिफाफों गुलदस्तों की
दुनिया है थोथे रिश्तों की

वाह ………हर बार की तरह शानदार गज़ल्।

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

आदरणीय चंद्रभान भारद्वाज जी
प्रणाम !
सादर सस्नेहाभिवादन !

वाह ! तुलसी बाबा की ज़मीन पर नये , अलग प्रकार के क़ाफ़ियों को ले'कर ख़ूबसूरत ग़ज़ल बुनी है आपने … बधाई !

भेंट लिफाफों गुलदस्तों की
दुनिया है थोथे रिश्तों की

शानदार मत्ले के साथ रवां-दवां ग़ज़ल !

भोग रहा कन्धों पर पीड़ा
बचपन ; बोझीले बस्तों की

जीवन की सच्चाइयों से जुड़ी तमाम बातें आपकी ग़ज़लों में होती हैं …
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !

- राजेन्द्र स्वर्णकार