टूटे हुए मचानों को कौन देखता है
उजड़े पड़े मकानों को कौन देखता है
भर तो दिए समय ने पर दर्द है अभी तक
घावों के उन निशानों को कौन देखता है
बारात जा चुकी है और उठ चुकी है डोली
अब सूने शामियानों को कौन देखता है
महफ़िल में सब निगाहें बस मंच पर टिकी हैं
नीचे के पायदानों को कौन देखता है
आते रहें उजाले मिलती रहे हवा भी
ऐसे उजालदानों को कौन देखता है
बनने को खीर पहले जो आग पर चढ़े थे
उन चावलों मखानों को कौन देखता है
गा गा के जिनको झेलीं थीं लाठियाँ और गोली
अब उन अमर तरानों को कौन देखता है
सब देखते दरीचे दालान और गुम्बद
पर नीव की चटानों को कौन देखता है
बलिदान हो गए हैं जो सरहदों की खातिर
उन वीरों उन जवानों को कौन देखता है
कन्धों से दूसरों के बस साधते निशाना
अब तीर या कमानों को कौन देखता है
पानी रुका है ऊपर नीचे है रेत केवल
नदियों के उन मुहानों को कौन देखता है
तुमको दिखाना होगा खुद वर्तमान अपना
गुज़रे हुए ज़मानों को कौन देखता है
डाली हुई सियासत की 'भारद्वाज' दिल में
नफ़रत की अब गठानों को कौन देखता है
चंद्रभान भारद्वाज
उजड़े पड़े मकानों को कौन देखता है
भर तो दिए समय ने पर दर्द है अभी तक
घावों के उन निशानों को कौन देखता है
बारात जा चुकी है और उठ चुकी है डोली
अब सूने शामियानों को कौन देखता है
महफ़िल में सब निगाहें बस मंच पर टिकी हैं
नीचे के पायदानों को कौन देखता है
आते रहें उजाले मिलती रहे हवा भी
ऐसे उजालदानों को कौन देखता है
बनने को खीर पहले जो आग पर चढ़े थे
उन चावलों मखानों को कौन देखता है
गा गा के जिनको झेलीं थीं लाठियाँ और गोली
अब उन अमर तरानों को कौन देखता है
सब देखते दरीचे दालान और गुम्बद
पर नीव की चटानों को कौन देखता है
बलिदान हो गए हैं जो सरहदों की खातिर
उन वीरों उन जवानों को कौन देखता है
कन्धों से दूसरों के बस साधते निशाना
अब तीर या कमानों को कौन देखता है
पानी रुका है ऊपर नीचे है रेत केवल
नदियों के उन मुहानों को कौन देखता है
तुमको दिखाना होगा खुद वर्तमान अपना
गुज़रे हुए ज़मानों को कौन देखता है
डाली हुई सियासत की 'भारद्वाज' दिल में
नफ़रत की अब गठानों को कौन देखता है
चंद्रभान भारद्वाज
2 comments:
बारात जा चुकी है और उठ चुकी है डोली
अब सूने शामियानों को कौन देखता है
तुमको दिखाना होगा खुद वर्तमान अपना
गुज़रे हुए ज़मानों को कौन देखता है
एक बार फिर से बहुत उम्दा ग़ज़ल पेश की है आपने.........पूरी ग़ज़ल लाजवाब लगी.
सब देखते दरीचे दालान और गुम्बद
पर नीव की चटानों को कौन देखता है
khoobasoorat gazal..
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