पग भर ज़मीन डग भर अंबर तलाशने में
पूरी उमर खपा दी इक घर तलाशने में
पल प्यार के गँवाए बस देखने में दरपन
श्रृंगार के गँवाए जेवर तलाशने में
करते रहे हैं वादा वो ताज के लिए पर
अटके हुए हैं संगेमरमर तलाशने में
चट्टान काट आई मैदान लाँघ आई
बालू हुई नदी अब सागर तलाशने में
तम से भरी डगर से तो आगए निकलकर
भटके तेरी गली में तेरा दर तलाशने में
नीलाम हो गया है अपना हरेक सपना
तेरी शान में दमकते गौहर तलाशने में
सब चूर चूर होते हैं ख्वाब लड़कियों के
होती है भूल कोई जब वर तलाशने में
करवट बदल बदल कर कटती है रात बाकी
जब नीद टूटती है बिस्तर तलाशने में
माया के जाल में अब वे भी फँसे हुए हैं
रहना था लीन जिनको ईश्वर तलाशने में
मंदिर बनाने वाले मस्जिद बनाने वाले
उलझे हुए हैं अबतक पत्थर तलाशने में
वह मिल नहीं सकेगा तुम्हें 'भारद्वाज' बाहर
पाओगे उसको अपने अंदर तलाशने में
चंद्रभान भारद्वाज
पूरी उमर खपा दी इक घर तलाशने में
पल प्यार के गँवाए बस देखने में दरपन
श्रृंगार के गँवाए जेवर तलाशने में
करते रहे हैं वादा वो ताज के लिए पर
अटके हुए हैं संगेमरमर तलाशने में
चट्टान काट आई मैदान लाँघ आई
बालू हुई नदी अब सागर तलाशने में
तम से भरी डगर से तो आगए निकलकर
भटके तेरी गली में तेरा दर तलाशने में
नीलाम हो गया है अपना हरेक सपना
तेरी शान में दमकते गौहर तलाशने में
सब चूर चूर होते हैं ख्वाब लड़कियों के
होती है भूल कोई जब वर तलाशने में
करवट बदल बदल कर कटती है रात बाकी
जब नीद टूटती है बिस्तर तलाशने में
माया के जाल में अब वे भी फँसे हुए हैं
रहना था लीन जिनको ईश्वर तलाशने में
मंदिर बनाने वाले मस्जिद बनाने वाले
उलझे हुए हैं अबतक पत्थर तलाशने में
वह मिल नहीं सकेगा तुम्हें 'भारद्वाज' बाहर
पाओगे उसको अपने अंदर तलाशने में
चंद्रभान भारद्वाज
6 comments:
बहुत खूबसूरत भावों को संजोये अच्छी गज़ल ..
करते रहे हैं वादा वो ताज के लिए पर
अटके हुए हैं संगेमरमर तलाशने में...vah bahut acchhi gajal.
अति उत्तम भाव संयोजन्।
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 16 -11-2010 मंगलवार को ली गयी है ...
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया
पूरी ग़ज़ल बेहतरीन,शिल्प और भाव दोनों लिहाज़ से.
sundar rachna!
regards,
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