Sunday, October 31, 2010

खड़े रहकर क़तारों में भी अब बारी नहीं आती

खड़े रहकर क़तारों में भी अब बारी नहीं आती
हमें क्रम तोड़ बढ़ने की कलाकारी नहीं आती

गँवा कर उम्र सारी हम लुटा बैठे हैं तन मन धन
वो कहते हैं हमें रस्मे वफादारी नहीं आती

उतरती आत्मा पहले किसी किरदार के अंदर
अदा संवाद करने से अदाकारी नहीं आती 

कलम को डूबना पड़ता लहू में और आँसू में 
फ़क़त कुछ शब्द रचने से गज़लकारी नहीं आती

नहीं रखता है जो इंसान अपने पाँव धरती पर  
उसे  खाए बिना  ठोकर समझदारी नहीं आती 

पिरोते हैं सुई में प्रेम के भी रेशमी धागे 
न हों वे रेशमी धागे तो गुलकारी नहीं आती 

स्वयं बनता है मिट्टी एक माली मिलके मिट्टी में 
महज बीजों से 'भारद्वाज' फुलवारी नहीं आती 

चंद्रभान भारद्वाज

8 comments:

सदा said...

खड़े रहकर क़तारों में भी अब बारी नहीं आती
हमें क्रम तोड़ बढ़ने की कलाकारी नहीं आती

गँवा कर उम्र सारी हम लुटा बैठे हैं तन मन धन
वो कहते हैं हमें रस्मे वफादारी नहीं आती

बहुत ही खूबसूरत शब्‍दों के साथ अनुपम प्रस्‍तुति ।

vandana gupta said...

यही आपकी गज़लों की खूबी है कि हर बार एक नये अन्दाज़ मे होती हैं और गहरा वार करती हैं दिल पर्…………………किस शेर की तारीफ़ करूँ और किसे छोडूँ……………नायाब गज़ल्।

निर्मला कपिला said...

गँवा कर उम्र सारी हम लुटा बैठे हैं तन मन धन
वो कहते हैं हमें रस्मे वफादारी नहीं आती

उतरती आत्मा पहले किसी किरदार के अंदर
अदा संवाद करने से अदाकारी नहीं आती

कलम को डूबना पड़ता लहू में और आँसू में
फ़क़त कुछ शब्द रचने से गज़लकारी नहीं आती
पूरी गज़ल ही लाजवाब है मगर ये शेर दिल को छूते चले गये। बधाई इस गज़ल के लिये।

POOJA... said...

वैसे तो हर लफ्ज़ अपने-आप में बखूबी रचा गया है... पर सबसे अच्छे लाइन्स हैं...
गँवा कर उम्र सारी हम लुटा बैठे हैं तन मन धन
वो कहते हैं हमें रस्मे वफादारी नहीं आती

इस्मत ज़ैदी said...

गँवा कर उम्र सारी हम लुटा बैठे हैं तन मन धन
वो कहते हैं हमें रस्मे वफादारी नहीं आती

बहुत उम्दा!


कलम को डूबना पड़ता लहू में और आँसू में
फ़क़त कुछ शब्द रचने से गज़लकारी नहीं आती

वाह!

'साहिल' said...

हर शेर लाजवाब है........किस किस पर दाद दें..........ये वाला शेर तो एकदम कमाल है ....


कलम को डूबना पड़ता लहू में और आँसू में
फ़क़त कुछ शब्द रचने से गज़लकारी नहीं आती

सतीश पंचम said...

बढ़िया लिखा है।

Sunil Kumar said...

कलम को डूबना पड़ता लहू में और आँसू में
फ़क़त कुछ शब्द रचने से गज़लकारी नहीं आती
बहुत उम्दा!बधाई