खड़े रहकर क़तारों में भी अब बारी नहीं आती
हमें क्रम तोड़ बढ़ने की कलाकारी नहीं आती
गँवा कर उम्र सारी हम लुटा बैठे हैं तन मन धन
वो कहते हैं हमें रस्मे वफादारी नहीं आती
उतरती आत्मा पहले किसी किरदार के अंदर
अदा संवाद करने से अदाकारी नहीं आती
कलम को डूबना पड़ता लहू में और आँसू में
फ़क़त कुछ शब्द रचने से गज़लकारी नहीं आती
नहीं रखता है जो इंसान अपने पाँव धरती पर
उसे खाए बिना ठोकर समझदारी नहीं आती
पिरोते हैं सुई में प्रेम के भी रेशमी धागे
न हों वे रेशमी धागे तो गुलकारी नहीं आती
स्वयं बनता है मिट्टी एक माली मिलके मिट्टी में
महज बीजों से 'भारद्वाज' फुलवारी नहीं आती
चंद्रभान भारद्वाज
Sunday, October 31, 2010
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8 comments:
खड़े रहकर क़तारों में भी अब बारी नहीं आती
हमें क्रम तोड़ बढ़ने की कलाकारी नहीं आती
गँवा कर उम्र सारी हम लुटा बैठे हैं तन मन धन
वो कहते हैं हमें रस्मे वफादारी नहीं आती
बहुत ही खूबसूरत शब्दों के साथ अनुपम प्रस्तुति ।
यही आपकी गज़लों की खूबी है कि हर बार एक नये अन्दाज़ मे होती हैं और गहरा वार करती हैं दिल पर्…………………किस शेर की तारीफ़ करूँ और किसे छोडूँ……………नायाब गज़ल्।
गँवा कर उम्र सारी हम लुटा बैठे हैं तन मन धन
वो कहते हैं हमें रस्मे वफादारी नहीं आती
उतरती आत्मा पहले किसी किरदार के अंदर
अदा संवाद करने से अदाकारी नहीं आती
कलम को डूबना पड़ता लहू में और आँसू में
फ़क़त कुछ शब्द रचने से गज़लकारी नहीं आती
पूरी गज़ल ही लाजवाब है मगर ये शेर दिल को छूते चले गये। बधाई इस गज़ल के लिये।
वैसे तो हर लफ्ज़ अपने-आप में बखूबी रचा गया है... पर सबसे अच्छे लाइन्स हैं...
गँवा कर उम्र सारी हम लुटा बैठे हैं तन मन धन
वो कहते हैं हमें रस्मे वफादारी नहीं आती
गँवा कर उम्र सारी हम लुटा बैठे हैं तन मन धन
वो कहते हैं हमें रस्मे वफादारी नहीं आती
बहुत उम्दा!
कलम को डूबना पड़ता लहू में और आँसू में
फ़क़त कुछ शब्द रचने से गज़लकारी नहीं आती
वाह!
हर शेर लाजवाब है........किस किस पर दाद दें..........ये वाला शेर तो एकदम कमाल है ....
कलम को डूबना पड़ता लहू में और आँसू में
फ़क़त कुछ शब्द रचने से गज़लकारी नहीं आती
बढ़िया लिखा है।
कलम को डूबना पड़ता लहू में और आँसू में
फ़क़त कुछ शब्द रचने से गज़लकारी नहीं आती
बहुत उम्दा!बधाई
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