Monday, February 15, 2010

किसी के नाम से यदि ज़िन्दगी जुड़ी होती

 बुझे  दियों  में  भी  इक  बार  रोशनी  होती
 किसी के नाम से यदि ज़िन्दगी जुड़ी होती

जहाँ पे धूप ही  हरदम  तपी रही  सर पर
वहाँ  भी पाँव के नीचे  तो  चाँदनी   होती  

भले   बहार  का  मौसम  कभी  नहीं  आता
किसी की चाह  की  बगिया  मगर  हरी होती

नज़र में  दूर  तक  फैला  भले अँधेरा हो
मगर विश्वास की कोई किरण दिखी होती

डगर में  पाँव  के  छाले  कहीं  पे  सहलाने
किसी भी पेड़ की कुछ छाँह तो मिली होती

कभी ये ज़िन्दगी ऐसे न धुन्धुवाती रहती
सुलगने  के  लिए  थोड़ी  हवा  रही  होती

जगह  देती  न  'भारद्वाज'  को अगर    दुनिया
अपनी दुनिया किसी दिल में अलग बसी होती

चंद्रभान भारद्वाज

6 comments:

सतपाल ख़याल said...

जगह देती न 'भारद्वाज' को अगर दुनिया
अपनी दुनिया किसी दिल में अलग बसी होती
kya she'r kaha hai bhardwaj ji..wahwa!! bahut khoob.

नीरज गोस्वामी said...

बेहतरीन ग़ज़ल के लिए दिली दाद कबूल करें.
नीरज

vandana gupta said...

बुझे दियों में भी इक बार रोशनी होती
किसी के नाम से यदि ज़िन्दगी जुड़ी होती

waah.........bahut badhiya gazal.

शोभा said...

waah waah bahut badhiya likha hai.badhayi.

सूर्य गोयल said...

नज़र में दूर तक फैला भले अँधेरा हो
मगर विश्वास की कोई किरण दिखी होती

क्या कहने भारद्वाज जी अजब भावो को गजब के शब्दों में पिरो कर जो गजल पेश की है वाकई उसके लिए आप बधाई के पात्र है. फर्क मात्र इतना है की आप अपने दिल के भावो कसे गजल लिखते है औरमैं गुफ्तगू करता हूँ. आपका मेरी गुफ्तगू में स्वागत है.

www.gooftgu.blogspot.com

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

श्रद्धेय भारद्वाज जी, आदाब
बुझे दियों में भी इक बार रोशनी होती
किसी के नाम से यदि ज़िन्दगी जुड़ी होती
मतले की जितनी भी दाद दी जाये, कम है...


जहाँ पे धूप ही हरदम तपी रही सर पर
वहाँ भी पाँव के नीचे तो चाँदनी होती
बहुत खूब...
भले बहार का मौसम कभी नहीं आता
किसी की चाह की बगिया मगर हरी होती
वाह..वाह
नज़र में दूर तक फैला भले अँधेरा हो
मगर विश्वास की कोई किरण दिखी होती
सलाम कबूल फ़रमायें