प्यार से और बढ़कर नशा कुछ नहीं;
रोग ऐसा कि जिसकी दवा कुछ नहीं।
जिस दिये को जलाकर रखा प्यार ने,
उसको तूफान आँधी हवा कुछ नहीं।
जान तक अपनी देता खुशी से सदा,
प्यार बदले में खुद माँगता कुछ नहीं।
जिसने तन मन समर्पण किया प्यार को
उसको दुनिया से है वास्ता कुछ नहीं।
आग की इक नदी पार करनी पड़े,
प्यार का दूसरा रास्ता कुछ नहीं।
रेत बनकर बिखरती रहे ज़िन्दगी,
शेष मुट्ठी में रहता बचा कुछ नहीं।
शेष मुट्ठी में रहता बचा कुछ नहीं।
3 comments:
ये है - प्यार के साइड इफेक्ट
बहुत सुन्दर भारद्वाज साहब !
श्रद्देय भारद्वाज जी
ये मुकम्मल ग़ज़ल है
सिर्फ 'अच्छी लगी'
कहकर अहमियत कम करने का अपराध नहीं करूंगा.
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
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