अब खुशी कोई नहीं लगती खुशी तेरे बिना;
ज़िन्दगी लगती नहीं अब ज़िन्दगी तेरे बिना।
रात में भी अब जलाते हम नहीं घर में दिया,
आँख में चुभने लगी है रोशनी तेरे बिना।
बात करते हैं अगर हम और आईना कभी,
आँख पर अक्सर उभर आती नमी तेरे बिना।
चाहते हम क्या हमें भी ख़ुद नहीं मालूम कुछ,
हर समय मन में कसकती फांस सी तेरे बिना।
सेहरा बाँधा समय ने कामयाबी का मगर,
चेहरे पर अक्श उभरे मातमी तेरे बिना।
पूर्ण है आकाश मेरा पूर्ण है मेरी धरा,
पर क्षितिज पर कुछ न कुछ लगती कमी तेरे बिना।
हम भले अब और अपना यह अकेलापन भला,
क्या किसी से दुश्मनी क्या दोस्ती तेरे बिना।
क्या किसी से दुश्मनी क्या दोस्ती तेरे बिना।
4 comments:
respected Bharaduaj ji ,
thanks for sendin comments. Ihave read your poems . you are having apoetic heart. Iwould like published some your gajjals on my blog . pl. allow me.
Bhai Rakesh ji,
Aapko to maine khula adhikar de rakha hai, aapne phir bhi poochha iske liye aabhari hoon.
With best wishes.
आदरणीय चन्द्रभान भारद्वाज जी,
आपकी टिप्पणी ग़ज़ल विधा पर पढी। इस संदर्भ में आपसे साहित्य शिल्पी मदद भी चाहता है। आपसे अनुरोध है कि अपना ईमेल पता अथवा फोन नं साहित्य शिल्पी के मेल आईडी पर प्रदान करने का कष्ट करें।
विनीत
साहित्य शिल्पी के लिये राजीव रंजन प्रसाद
www.sahityashilpi.com
email - sahityashilpi@gmail.com
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