Friday, August 30, 2019



बदलती अचानक दिशा जब हवा भी

बदलती अचानक दिशा जब हवा भी
बिना बरसे उड़ती उमड़ती घटा भी

न जाने किया कौन सा जुर्म उसने
न मिलती रिहाई न मिलती सजा भी

कदम लाँघ आए हैं जब देहरी को
दिखी अपनी मंजिल दिखा रास्ता भी

जो कर कर के नेकी बहाता नदी में
उमर भर वही शख्स फूला फला भी

विषय  प्रेम का एक अदभुत विषय है
स्वयं रोग भी है स्वयं ही दवा भी

मिली डाक में प्रेम-पाती भी ऐसी
न प्रेषक लिखा था न  उसका पता भी

जता व्यस्तता वो 'भरद्वाज ' अपनी
ढली रात आया था तड़के गया भी

चंद्रभान भारद्वाज 






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