Thursday, March 7, 2019

हंसों के मन में बेईमानी

 
घर कर गई है हंसों के मन में बेईमानी 

करते नहीं अलग अब वे दूध और पानी 


डाली जड़ों में जब से कुछ खाद यूरिया की 

फूली तो है बहुत पर महके न रातरानी 


कुछ डाल के वो पत्ते जो डाल से जुड़े हैं 

आँधी की कोई धमकी उनने कभी न मानी 


वैसे तो सब रियासत पहले ही मिट गई थीं 

पैदा हुए नए अब कुछ राजा और रानी 


बस जोड़ तोड़ का है अब खेल यह सियासत 

गठबंधनों का अड्डा है आज राजधानी 


जब बोझ हद से ज्यादा गाड़ी पे लद रहा हो 

तो चाल होती धीमी या टूटती कमानी 


हैं 'भारद्वाज ' ऐसे भी हीरे कुछ ग़ज़ल में 

कल था न जिनका सानी अब भी न उनका सानी 


चंद्रभान भारद्वाज 





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