कभी तो डुबाया कभी पर उबारा
नदी नाव जैसा है रिश्ता हमारा
कहीं गहरा पानी कहीं तेज धारा
समझते रहे थे जहाँ इक किनारा
रहा हमसफ़र जो रहा हम निवाला
उसी ने ही इस दिल में खंजर उतारा
जहाँ भी रही काठ की एक हांड़ी
चढ़ी है कहाँ आग पर वह दुबारा
बहाया समझ कर जिसे एक तिनका
वही बन गया डूबते को सहारा
रहा था सदा बख्शता ज़िन्दगी को
मगर आज उसने ही बेमौत मारा
सिवा दर्द के और कुछ भी नहीं था
खुला जब थमी ज़िन्दगी का पिटारा
चमकता रहा जो अभी तक गगन में
वही आज डूबा हुआ है सितारा
हराता रहा था जिसे ज़िन्दगी भर
'भरद्वाज' उस से ही खुद आज हारा
चंद्रभान भारद्वाज
नदी नाव जैसा है रिश्ता हमारा
कहीं गहरा पानी कहीं तेज धारा
समझते रहे थे जहाँ इक किनारा
रहा हमसफ़र जो रहा हम निवाला
उसी ने ही इस दिल में खंजर उतारा
जहाँ भी रही काठ की एक हांड़ी
चढ़ी है कहाँ आग पर वह दुबारा
बहाया समझ कर जिसे एक तिनका
वही बन गया डूबते को सहारा
रहा था सदा बख्शता ज़िन्दगी को
मगर आज उसने ही बेमौत मारा
सिवा दर्द के और कुछ भी नहीं था
खुला जब थमी ज़िन्दगी का पिटारा
चमकता रहा जो अभी तक गगन में
वही आज डूबा हुआ है सितारा
हराता रहा था जिसे ज़िन्दगी भर
'भरद्वाज' उस से ही खुद आज हारा
चंद्रभान भारद्वाज
1 comment:
बहाया जिसे समझ कर तिनका , वही सहारा काम आया !
बहुत खूब !
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