इक खून का कोई कहीं हासिल नहीं पाया
चाकू नहीं पाया कभी कातिल नहीं पाया
जो जुर्म में शामिल थे वे छूटे हुए बाहर
जो कैद है वह जुर्म में शामिल नहीं पाया
इंसान तो मजबूर है क़ानून है अंधा
जो वाद को अंजाम दे वह दिल नहीं पाया
आया हुआ है रास्ते के बीच जो पत्थर
चाहा हटाना पर जरा भी हिल नहीं पाया
डस करअचानक हो गया है आँख से ओझल
जिसमें छिपा है साँप का वह बिल नहीं पाया
काँटों में फँस कर फट गया है रेशमी आँचल
उलझा हुआ हर तार ऐसा सिल नहीं पाया
हालात कैसे कर गया है बाग़ का मौसम
सूखा नहीं पर फूल कोई खिल नहीं पाया
बैठे हुए हैं लोग ऐसे मंच के ऊपर
जिनको दरी के भी कभी काबिल नहीं पाया
कश्ती उतारी तो है 'भारद्वाज' सागर में
कोई अभी तक राह या साहिल नहीं पाया
चंद्रभान भारद्वाज
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