Thursday, December 8, 2011

ज़िन्दगी उत्तर भी है

ज़िन्दगी इक प्रश्न भी है ज़िन्दगी उत्तर भी है 
फल कहीं वरदान का शापित कहीं पत्थर भी है 


है गुनाहों और दागों से भरा दामन कहीं 
पर कहीं दरगाह  की इक रेशमी चादर भी है 

लग नहीं पाता किसी सूरत से सीरत का पता 
तह पे तह बाहर भी उसके तह पे तह भीतर भी है 


ज़िन्दगी खुद ही जुआ है खुद लगी है दाँव पर 
खुद शकुनि है खुद ही पासे और खुद चौसर भी है 


फब्तियाँ मक्कारियाँ चालाकियाँ बेशर्मियाँ 
आजकल की ज़िन्दगी बिग बॉस जैसा घर भी है 


करना परिभाषित कठिन है ज़िन्दगी का फलसफा 
बूँद सी छोटी भी है गहरा महासागर भी है 


झाँकती अट्टालिकाओं के झरोखों से कहीं 
पर कहीं फुटपाथ पर बेबस भी है बेघर भी है 


है ज़माने के निठुर हाथों की कठपुतली कभी 
पर कभी सीने पे उसके रेंगता अजगर भी है 


चल रहा है लाद 'भारद्वाज' कंधों पर जिसे 
पुण्य की है पोटली तो पाप का गट्ठर भी है 


चंद्रभान भारद्वाज








5 comments:

SANDEEP PANWAR said...

बेहतरीन लिखा है,

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...






आदरणीय चंद्रभान भारद्वाज जी
सादर प्रणाम !


बहुत शानदार और जानदार हमेशा की तरह-
लग नहीं पाता किसी सूरत से सीरत का पता
तह पे तह बाहर भी उसके तह पे तह भीतर भी है

क्या बात है !

ज़िन्दगी खुद ही जुआ है खुद लगी है दाँव पर
खुद शकुनि है खुद ही पासे और खुद चौसर भी है

जवाब नहीं सर ! सैल्यूट !!

फब्तियाँ मक्कारियाँ चालाकियाँ बेशर्मियाँ
आजकल की ज़िन्दगी बिग बॉस जैसा घर भी है

आहाऽऽहऽऽ… ! मेरे मन की बात कहदी …
काश ! बेशर्मों से नई पौध को बचाया जा सके …

चल रहा है लाद 'भारद्वाज' कंधों पर जिसे
पुण्य की है पोटली तो पाप का गट्ठर भी है

आपकी ग़ज़लों के जादू से बाहर निकलना मुश्किल होता है -

जितना भी कहूंगा , फिर भी शेष रह जाएगा …
आप लिखते रहें , हम पढ़ते रहें ।

बहुत बहुत बहुत मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार

chandrabhan bhardwaj said...

Bhai Rajendra ji,
Apki tippadiyon ke liye bahut bahut dhanywaad,bahut protsahan milta hai Abhari hoon.

Pawan Kumar said...

वैसे तो हर शेर लाज़वाब है........
मगर ये शेर दिल को छू गए......


ज़िन्दगी खुद ही जुआ है खुद लगी है दाँव पर
खुद शकुनि है खुद ही पासे और खुद चौसर भी है

है गुनाहों और दागों से भरा दामन कहीं
पर कहीं दरगाह की इक रेशमी चादर भी है



फब्तियाँ मक्कारियाँ चालाकियाँ बेशर्मियाँ
आजकल की ज़िन्दगी बिग बॉस जैसा घर भी है


झाँकती अट्टालिकाओं के झरोखों से कहीं
पर कहीं फुटपाथ पर बेबस भी है बेघर भी है
भरद्वाज जी फुटपाथ के साथ ये राबता अच्छा लगा.....!

डॉ. मोनिका शर्मा said...

ज़िन्दगी खुद ही जुआ है खुद लगी है दाँव पर
खुद शकुनि है खुद ही पासे और खुद चौसर भी है

Khoob Kaha....