Monday, November 21, 2011

बराबर मिलेगा

न ज्यादा मिलेगा न कमतर मिलेगा
लिखा उसने जितना बराबर मिलेगा

जड़ें सींचना तो पड़ेंगी निरंतर

मगर डाल पर फल समय पर मिलेगा

जपोगे नहीं जब तलक उसको मन से

न बाहर मिलेगा न भीतर मिलेगा

पड़ेगी नज़र उसकी जिस पर भी सीधी

पड़ा था जो तळ में शिखर पर मिलेगा

न यादों से उसको सजाओगे हरदम

तो घर प्यार का एक खँडहर मिलेगा

मिला जिस शजर पर बहारों का मौसम

उसी पर ही इक रोज पतझर मिलेगा

बिना धूल खाए पसीना बहाए

न धरती मिलेगी न अम्बर मिलेगा

है ओढ़ी फकीरी तो परवाह कैसी

कहाँ रोटी कपड़ा कहाँ घर मिलेगा

हुई दृष्टि गहरी 'भरद्वाज' जिसकी

उसे बूँद में ही समुन्दर मिलेगा

चंद्रभान भारद्वाज

1 comment:

Pawan Kumar said...

मिला जिस शजर पर बहारों का मौसम
उसी पर ही इक रोज पतझर मिलेगा

सच कहा आपने

है ओढ़ी फकीरी तो परवाह कैसी
कहाँ रोटी कपड़ा कहाँ घर मिलेगा
ये सूफियाना अंदाज़ खूब भाया......!