Sunday, November 13, 2011

मेरा लिखा रह जायगा

अनसुना रह जायगा कुछ अनकहा रह जायगा
मैं  रहूँ  या  ना  रहूँ  मेरा  लिखा  रह  जायगा

वक़्त के आगे नहीं रखता है जो अपने कदम
वक़्त के मलबे के नीचे वह दबा रह जायगा

रुक गया जिस दिन भी अपनी जिंदगानी का बहाव
खार कीचड़ काई या पानी सडा रह जायगा

शब्द में बाँधा नहीं यदि आज के अहसास को
सभ्यता की भीड़ में वह लापता रह जायगा

क्या पता नासूर सा बनकर उभर आएगा कब
बात का काँटा अगर दिल में चुभा रह जायगा

लोग जो जलती मशालों को बुझाने में लगे
एक दिन उनका भी चेहरा बदनुमा रह जायगा

लूटने में लग रहे जब लोग लाशों का कफ़न
कौन नंगों और भूखों के सिवा रह जायगा

डालियों  पर  गिद्ध  बैठे  हैं  जड़ों  में  दीमकें 
देखना यह पेड़ इक दिन खोखला रह जायगा

बागड़ें खुद खेत को जब रात दिन चट कर रहीं
फिर वहाँ बंजर धरा के और क्या रह जायगा

राज रथ चल कर सड़क से जाएगा संसद तलक
आदमी पहियों के नीचे ही पिसा रह जायगा

क्या करोगे अर्थ 'भारद्वाज' इतना जोड़कर
साथ अरथी जायगी बाकी धरा रह जायगा

चंद्रभान भारद्वाज







6 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

रुक गया जिस दिन भी अपनी जिंदगानी का बहाव
खार कीचड़ काई या पानी सडा रह जायगा

सार्थक और सटीक रचना ..

सदा said...

बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

अनुपमा पाठक said...

सुन्दर प्रस्तुति!
हर एक पंक्ति अनुभव और गंभीर मंथन की कथा कहती है!

नीरज गोस्वामी said...

वाह....सार्थक रचना

नीरज

डॉ. मोनिका शर्मा said...

अनसुना रह जायगा कुछ अनकहा रह जायगा
मैं रहूँ या ना रहूँ मेरा लिखा रह जायगा

बहुत सुंदर पंक्तियाँ ...... आभार

Pawan Kumar said...

नीरज जी
अच्छी ग़ज़ल......

शब्द में बाँधा नहीं यदि आज के अहसास को
सभ्यता की भीड़ में वह लापता रह जायगा

और इस शेर के क्या कहने..... अद्भुत !!

डालियों पर गिद्ध बैठे हैं जड़ों में दीमकें
देखना यह पेड़ इक दिन खोखला रह जायगा


इस शेर की जितनी तारीफ की जाये उतनी कम .... दाद क़ुबूल फरमाएं