Monday, October 31, 2011

तलवार के पीछे

खूनी कथाएं लिख रहीं तलवार के पीछे 
दफना दिया हर राज़ पर अखबार के पीछे 

उम्मीद रक्खोगे बता क्या न्याय की उनसे 
जो खुद खड़े हैं आज गुनाहगार के पीछे 

ऊपर से देखेंगे अगर तो दिख नहीं पाता
अंदर छिपा है स्वार्थ हर उपकार के पीछे 

लगता अकेला सा अकेला है नहीं लेकिन 
इक दर्द रहता है सदा फनकार के पीछे 

रहता हँसाता भीड़ को जो रोज परदे पर
है आँसुओं की बाढ़ उस किरदार के पीछे 

लग तो रहा है चैन से बैठा हुआ होगा 
पर भग रहा है आदमी कलदार के पीछे 

सडकों पे आकर खुद पलट देती है अब तख्ता 
पड़ती है जब जनता किसी  सरकार के पीछे 

तकदीर में अक्सर भलाई के लिखीं चोटें 
है पत्थरों का ढेर हर फलदार के पीछे 

कोई सदी या सभ्यता कोई हो 'भारद्वाज' 
होते रहे हैं हादसे हर प्यार के पीछे

चंद्रभान भारद्वाज

9 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

ऊपर से देखेंगे अगर तो दिख नहीं पाता
अंदर छिपा है स्वार्थ हर उपकार के पीछे

रहता हँसाता भीड़ को जो रोज परदे पर
है आँसुओं की बाढ़ उस किरदार के पीछे

सटीक और सुन्दर गज़ल

Bharat Bhushan said...

तकदीर में अक्सर भलाई के लिखीं चोटें
है पत्थरों का ढेर हर फलदार के पीछे

बढ़िया ग़ज़ल.

Yashwant R. B. Mathur said...

तकदीर में अक्सर भलाई के लिखीं चोटें
है पत्थरों का ढेर हर फलदार के पीछे

बहुत ही बढ़िया सर!

सादर

mridula pradhan said...

ऊपर से देखेंगे अगर तो दिख नहीं पाता
अंदर छिपा है स्वार्थ हर उपकार के पीछे
bahut achche......

chandrabhan bhardwaj said...

Sangeeta ji
Nai purani halchal men aaj meri ghazal prakashit karane ke liye bahut bahut dhanywad.
Chandrabhan Bhardwaj.

रचना दीक्षित said...

लाजवाब गज़ल. आभार

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

शानदार ग़ज़ल सर,
सादर बधाई..

अनुपमा पाठक said...

रहता हँसाता भीड़ को जो रोज परदे पर
है आँसुओं की बाढ़ उस किरदार के पीछे
वाह! सच तो कुछ ऐसा ही है!

हास्य-व्यंग्य का रंग गोपाल तिवारी के संग said...

ऊपर से देखेंगे अगर तो दिख नहीं पाता
अंदर छिपा है स्वार्थ हर उपकार के पीछे

Bahut Khoob.