Monday, September 13, 2010

कहीं इस ज़िन्दगी में जश्न की तैयारियाँ भी हैं

कहीं कमजोरियाँ  भी हैं कहीं लाचारियाँ  भी हैं
मगर  इस ज़िन्दगी में जश्न की तैयारियाँ भी हैं

गरज ये है निगाहें इस ज़मीं पर ढूँढती हैं क्या
छिपे शबनम के मोती भी दबीं चिनगारियाँ भी हैं

रखा है उम्र ने हर बोझ अपना टाँग कन्धों पर
बंधीं  मजबूरियाँ भी हैं बंधी खुद्दारियाँ भी हैं

लिखे हैं भूख के किस्से अभावों की इबारत भी
मगर मासूम अधरों पर खिली किलकारियाँ भी हैं

उगे इस दिल की धरती पर तो अक्सर प्यार के पौधे
ज़माने के मगर हाथों में पैनी आरियाँ भी हैं

यहाँ पलटे हैं जब जब भी किसी इतिहास के पन्ने
जहाँ कुर्बानियाँ लिक्खीं वहाँ गद्दारियाँ भी हैं 

इरादों को अटल रखना शिखर रखना निगाहों में 
डगर में वन बबूलों के भी हैं फुलवारियाँ भी हैं 

समय का चक्र हरदम घूमता चारों तरफ अपने
अमावस इक तरफ है इक तरफ उजियारियाँ भी हैं

बसी है इक अलग दुनिया ही 'भारद्वाज' इस दिल में
दहकती वादियाँ हैं तो महकती क्यारियाँ भी हैं

चंद्रभान भारद्वाज

5 comments:

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

उगे इस दिल की धरती पर तो अक्सर प्यार के पौधे
ज़माने के मगर हाथों में पैनी आरियाँ भी हैं
भारद्वाज जी, कमाल का शेर दिया है...
यहाँ पलटे हैं जब जब भी किसी इतिहास के पन्ने
जहाँ कुर्बानियाँ लिक्खीं वहाँ गद्दारियाँ भी हैं
सच कहा....
”चंद क़तरों से समंदर नहीं देखा जाता”
इरादों को अटल रखना शिखर रखना निगाहों में
डगर में वन बबूलों के भी हैं फुलवारियाँ भी हैं
पूरी ग़ज़ल...हर शेर शानदार है.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

पूरी गज़ल बहुत सुन्दर ...सटीक बात कहती हुई ..

इस्मत ज़ैदी said...

लिखे हैं भूख के किस्से अभावों की इबारत भी
मगर मासूम अधरों पर खिली किलकारियाँ भी हैं

उगे इस दिल की धरती पर तो अक्सर प्यार के पौधे
ज़माने के मगर हाथों में पैनी आरियाँ भी हैं

यहाँ पलटे हैं जब जब भी किसी इतिहास के पन्ने
जहाँ कुर्बानियाँ लिक्खीं वहाँ गद्दारियाँ भी हैं

वाह!
बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल

हरकीरत ' हीर' said...

बहुत खूब ......!!
ज़िन्दगी की तमाम जद्दोज़हद को आपने अपने शब्दों में पिरो दिया है ...
हर शे'र उम्र की पकड़ है ...

रखा है उम्र ने हर बोझ अपना टाँग कन्धों पर
बंधीं लाचारियाँ भी हैं बंधी खुद्दारियाँ भी हैं

यहाँ पलटे हैं जब जब भी किसी इतिहास के पन्ने
जहाँ कुर्बानियाँ लिक्खीं वहाँ गद्दारियाँ भी हैं
waah......
ज़िन्दगी के दोनों पहलू दिखाती नायाब gazal कही है भारद्वाज ji .....bdhai ....!!

sandhyagupta said...

गरज ये है निगाहें इस ज़मीं पर ढूँढती हैं क्या
छिपे शबनम के मोती भी दबीं चिनगारियाँ भी हैं

लिखे हैं भूख के किस्से अभावों की इबारत भी
मगर मासूम अधरों पर खिली किलकारियाँ भी हैं

विरोधाभासों को इंगित करते हुए बहुत खूब लिखा है.शुभकामनायें.