कहीं कमजोरियाँ भी हैं कहीं लाचारियाँ भी हैं
मगर इस ज़िन्दगी में जश्न की तैयारियाँ भी हैं
गरज ये है निगाहें इस ज़मीं पर ढूँढती हैं क्या
छिपे शबनम के मोती भी दबीं चिनगारियाँ भी हैं
रखा है उम्र ने हर बोझ अपना टाँग कन्धों पर
बंधीं मजबूरियाँ भी हैं बंधी खुद्दारियाँ भी हैं
लिखे हैं भूख के किस्से अभावों की इबारत भी
मगर मासूम अधरों पर खिली किलकारियाँ भी हैं
उगे इस दिल की धरती पर तो अक्सर प्यार के पौधे
ज़माने के मगर हाथों में पैनी आरियाँ भी हैं
यहाँ पलटे हैं जब जब भी किसी इतिहास के पन्ने
जहाँ कुर्बानियाँ लिक्खीं वहाँ गद्दारियाँ भी हैं
इरादों को अटल रखना शिखर रखना निगाहों में
डगर में वन बबूलों के भी हैं फुलवारियाँ भी हैं
समय का चक्र हरदम घूमता चारों तरफ अपने
अमावस इक तरफ है इक तरफ उजियारियाँ भी हैं
बसी है इक अलग दुनिया ही 'भारद्वाज' इस दिल में
दहकती वादियाँ हैं तो महकती क्यारियाँ भी हैं
चंद्रभान भारद्वाज
Monday, September 13, 2010
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5 comments:
उगे इस दिल की धरती पर तो अक्सर प्यार के पौधे
ज़माने के मगर हाथों में पैनी आरियाँ भी हैं
भारद्वाज जी, कमाल का शेर दिया है...
यहाँ पलटे हैं जब जब भी किसी इतिहास के पन्ने
जहाँ कुर्बानियाँ लिक्खीं वहाँ गद्दारियाँ भी हैं
सच कहा....
”चंद क़तरों से समंदर नहीं देखा जाता”
इरादों को अटल रखना शिखर रखना निगाहों में
डगर में वन बबूलों के भी हैं फुलवारियाँ भी हैं
पूरी ग़ज़ल...हर शेर शानदार है.
पूरी गज़ल बहुत सुन्दर ...सटीक बात कहती हुई ..
लिखे हैं भूख के किस्से अभावों की इबारत भी
मगर मासूम अधरों पर खिली किलकारियाँ भी हैं
उगे इस दिल की धरती पर तो अक्सर प्यार के पौधे
ज़माने के मगर हाथों में पैनी आरियाँ भी हैं
यहाँ पलटे हैं जब जब भी किसी इतिहास के पन्ने
जहाँ कुर्बानियाँ लिक्खीं वहाँ गद्दारियाँ भी हैं
वाह!
बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल
बहुत खूब ......!!
ज़िन्दगी की तमाम जद्दोज़हद को आपने अपने शब्दों में पिरो दिया है ...
हर शे'र उम्र की पकड़ है ...
रखा है उम्र ने हर बोझ अपना टाँग कन्धों पर
बंधीं लाचारियाँ भी हैं बंधी खुद्दारियाँ भी हैं
यहाँ पलटे हैं जब जब भी किसी इतिहास के पन्ने
जहाँ कुर्बानियाँ लिक्खीं वहाँ गद्दारियाँ भी हैं
waah......
ज़िन्दगी के दोनों पहलू दिखाती नायाब gazal कही है भारद्वाज ji .....bdhai ....!!
गरज ये है निगाहें इस ज़मीं पर ढूँढती हैं क्या
छिपे शबनम के मोती भी दबीं चिनगारियाँ भी हैं
लिखे हैं भूख के किस्से अभावों की इबारत भी
मगर मासूम अधरों पर खिली किलकारियाँ भी हैं
विरोधाभासों को इंगित करते हुए बहुत खूब लिखा है.शुभकामनायें.
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