Wednesday, August 25, 2010

पहले तो न थी

 
धुंध जो वातावरण में आज पहले तो न थी;

रोशनी की हर किरण रंगवाज  पहले तो न थी।



लाँघ आई सरहदों को आदमी के नाम पर,

कुर्सियों की कैद में आवाज पहले तो न थी।



कर गई सारा शहर पल में हवाले आग के,

यह हवा इतनी करिश्मेबाज पहले तो न थी।



बांटती अपने लिए ख़ुद फूलमालाएं यहाँ,

मूर्ति वन्दनवार की मोहताज पहले तो न थी ।



कौन कब किसको बना लेगा निशाना क्या पता,

दाँव पर हर आदमी की लाज पहले तो न थी।



शर्त पहले ही रखी है ताज के निर्माण की,

बात ऐसी प्यार में मुमताज पहले तो न थी।



सेंकते जलती चिता पर लोग अपनी रोटियां,

ज़िन्दगी खुदगर्ज 'भारद्वाज' पहले तो न थी।



चंद्रभान भारद्वाज

5 comments:

arvind said...

धुंध जो वातावरण में आज पहले तो न थी;

रोशनी की हर किरण रंगवाज पहले तो न थी।

....लाजबाब ..जितनी भी प्रशँसा की जये कम है.

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

कौन कब किसको बना लेगा निशाना क्या पता,
दाँव पर हर आदमी की लाज पहले तो न थी।
भारद्वाज जी, दो मिसरों में कितना कुछ कह गये आप...
हासिल ग़ज़ल शेर लगा है ये...

शर्त पहले ही रखी है ताज के निर्माण की,

बात ऐसी प्यार में मुमताज पहले तो न थी।
सच कहा है....
”मुहब्बत अब तिजारत बन गई है”
उम्दा ग़ज़ल.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत खूब....सुन्दर गज़ल

नीरज गोस्वामी said...

भारद्वाज साहब आपकी ग़ज़ल से बहुत कुछ सीखने को मिलता है...जिस सादगी से आप दिल के भाव ग़ज़ल में पिरोते हैं वो अद्भुत है...हर शेर बेहद खूबसूरत बन पड़ा है...नमन है आपके लेखन को...
नीरज

अर्चना तिवारी said...

आपके ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ....इतनी सुंदर भावविभोर कर देने वाली ग़ज़लें हैं आपकी...सारी ग़ज़लें बेहद खूबसूरत हैं