Wednesday, July 7, 2010

टूट जाती है

समय की मार से अल्हड़ जवानी टूट जाती है  
 लदा हो बोझ ज्यादा तो कमानी टूट जाती है 

ठहरने ही नहीं देती किसी को वेग में अपने 
नदी मुड़ती   जहाँ उसकी रवानी टूट जाती है

समय के वक्ष पर करवट बदलती जब नई धारा 
बनी थी लीक जो सदियों पुरानी टूट जाती है 

कसौटी पर परखते वक़्त बस इतना समझ लेना 
तनिक शक पर मुहब्बत की कहानी टूट जाती है 

अगर टूटा कभी कोई कुँवारी आँख का सपना 
कुँवारे प्यार की हर इक निशानी टूट जाती है 

महकती है भले ही रात भर प्रिय की प्रतीक्षा में 
सवेरे तक मगर वह रातरानी टूट जाती है 

हदों को तोड़ आती जब सड़क पर बात आँगन की 
बनी दीवार ऊँची खानदानी टूट जाती है 

अचानक मौत अपना खेल दिखला कर चली जाती 
सड़क पर जब नज़र की सावधानी टूट जाती है 

उछलना कूदना अच्छा न 'भारद्वाज' इस वय में 
लचक कर रीढ़ की हड्डी पुरानी टूट जाती है 

चंद्रभान भारद्वाज     

13 comments:

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

बेहतरीन ग़ज़ल ! हरेक पंक्ति लाजवाब ...

समय के वक्ष पर करवट बदलती जब नई धारा
बनी थी लीक जो सदियों पुरानी टूट जाती है

हदों को तोड़ आती जब सड़क पर बात आँगन की
बनी दीवार ऊँची खानदानी टूट जाती है

ये पंक्तियाँ मुझे बेहद पसंद आये

दिगम्बर नासवा said...

कसौटी पर परखते वक़्त बस इतना समझ लेना
तनिक शक पर मुहब्बत की कहानी टूट जाती है

बहुत ही खूबसूरत शेर है, बिल्कुल सही ... और ग़ज़ल के तो क्या कहने ... सुंभान अल्ला ...

इस्मत ज़ैदी said...

समय के वक्ष पर करवट बदलती जब नई धारा
बनी थी लीक जो सदियों पुरानी टूट जाती है
बेहद ख़ूबसूरत ग़ज़ल!

कसौटी पर परखते वक़्त बस इतना समझ लेना
तनिक शक पर मुहब्बत की कहानी टूट जाती है
हक़ीक़त शेर की शक्ल में ढल गई है!

हदों को तोड़ आती जब सड़क पर बात आँगन की
बनी दीवार ऊँची खानदानी टूट जाती है
वाह!
पूरी ग़ज़ल ही हक़ीक़तों पर मबनी है

vandana gupta said...

हमेशा ही आपकी हर गज़ल गज़ब की होती है…………हर बार एक नया संदेश दे जाती है…………………आभार्।

Pawan Kumar said...

भारद्वाज साहब
काफी दिनों बाद आपका ब्लॉग खोला तो यह ग़ज़ल नसीब हुयी.....
ठहरने ही नहीं देती किसी को वेग में अपने
नदी मुड़ती जहाँ उसकी रवानी टूट जाती है
क्या बेहतरीन शेर है........
समय के वक्ष पर करवट बदलती जब नई धारा
बनी थी लीक जो सदियों पुरानी टूट जाती है
भाषाओँ के कोलाज में लिपटा यह शेर आपके हुनर की निशानी है.....
कसौटी पर परखते वक़्त बस इतना समझ लेना
तनिक शक पर मुहब्बत की कहानी टूट जाती है
उफ्फ्फ.....सच्चाई भी कितने करीने से कही जा सकती है.....जिंदाबाद.....!
हदों को तोड़ आती जब सड़क पर बात आँगन की
बनी दीवार ऊँची खानदानी टूट जाती है
बहुत ही साधा हुआ शेर और सधी हुयी बात.....
आगे भी ऐसे ही इन्तिज़ार रहेगा.....!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत बढ़िया ग़ज़ल...सन्देश देती हुई

कसौटी पर परखते वक़्त बस इतना समझ लेना
तनिक शक पर मुहब्बत की कहानी टूट जाती है

और यह तो बहुत ही बढ़िया है..

राजकुमार सोनी said...

बहुत ही जबरदस्त लिखा है आपने
काफी दिनों के बाद कोई दमदार गजल, जिसमें सामाजिक सरोकार की बानगी देखने को मिलती है वह पढ़ने को मिली.
आपको बधाई.

निर्मला कपिला said...

ापकी हर गज़ल लाजवाब होती है।
समय के वक्ष पर करवट बदलती जब नई धारा
बनी थी लीक जो सदियों पुरानी टूट जाती है

कसौटी पर परखते वक़्त बस इतना समझ लेना
तनिक शक पर मुहब्बत की कहानी टूट जाती है

हदों को तोड़ आती जब सड़क पर बात आँगन की
बनी दीवार ऊँची खानदानी टूट जाती है
युए अशार तो कमाल के हैं बहुत बहुत बधाई

नीरज गोस्वामी said...

भारद्वाज जी प्रणाम...इतनी सच्ची और ग़ज़ल के लिए ढेरों दाद कबूल करें...आपकी लेखनी की रवानी के समक्ष नतमस्तक हूँ...
नीरज

lawyerjourno said...

You are a wonderful poet and lines in this one are amazingly beautiful......हदों को तोड़ आती जब सड़क पर बात आँगन की
बनी दीवार ऊँची खानदानी टूट जाती है .......line is superb...

thank u da!

वीरेंद्र सिंह said...

Badi hi sunder gazal likhi hai aapne. padhte hi dil khush ho gaya.

Aap ke blog par aana safal raha.

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

परम आदरणीय भारद्वाज जी
प्रणाम !
नमन !
बात इस ग़ज़ल पर कर रहा हूं …लेकिन आपकी पिछली कई पोस्टों की ग़ज़लें पढ़ी हैं , बार बार पढ़ी हैं । नतमस्तक हूं । क्या कहने है आपकी अनुभवों से समृद्ध लेखनी के !

प्रस्तुत ग़ज़ल मतले से ही अपना ज़ादू बिखेरने लगती है …
समय की मार से अल्हड़ जवानी टूट जाती है
लदा हो बोझ ज्यादा तो कमानी टूट जाती है

आगे चलते हैं तो सम्मोहन और ज़्यादा अपनी गिरफ़्त में ले लेता है …

कसौटी पर परखते वक़्त बस इतना समझ लेना
तनिक शक पर मुहब्बत की कहानी टूट जाती है

क़ुर्बान !
… और फ़िदा हो गया मज़ाहिया लहज़े में ज़िंदगी का फ़ल्सफ़ा सामने रख देने के अंदाज़ पर …
उछलना कूदना अच्छा न 'भारद्वाज' इस वय में
लचक कर रीढ़ की हड्डी पुरानी टूट जाती है


पुनः नमन है !

शुभकामनाओं सहित …

- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं

डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह said...

Bhai,gazab hi kartey ho aap,ummda gazal lekin is sey bhi jyada hai.Bahut dino baad is paye ki rachna padhi .
Mera aabhar aur abhinandan.
sader
dr.bhoopendra
jeevansandarbh.blogspot.com