Friday, June 11, 2010

बलुआ धरती पानी सी लगती

मृग तृष्णा में  बलुआ धरती  पानी सी लगती
छलना अक्सर सच की एक कहानी सी लगती

कोख किराये पर मिलती है अब बाजारों में
मूल्यों की हर बात यहाँ बेमानी सी लगती 

एक छलाँग लगाकर कल आकाश छुआ हमने 
पर ऐसी हर कोशिश  अब  नादानी सी लगती 

शंकाओं  ने  बोये  ऐसे   बीज  विचारों   में 
सत्य कहानी लेकिन गलत बयानी सी लगती 

कदम कदम पर जाल छलावों और कुचक्रों के 
मीठे बोलों के पीछे शैतानी  सी लगती 

प्रश्न खड़े हैं कपड़ा रोटी और मकानों के 
उत्तर कुटिल समय की आनाकानी सी लगती 

भाषा  भेष  और  भूषा  में  ऐसी   बौराई
हिन्दुस्तानी पीढ़ी इंग्लिस्तानी सी लगती 

पहले देखा और न पहले परिचय था कोई 
लेकिन वह सूरत जानी पहचानी सी लगती 

जब भी   'भारद्वाज' करे दुःख दर्दों की बातें 
जाने क्यों वह अपनी रामकहानी सी लगती 

चंद्रभान भारद्वाज

12 comments:

अनामिका की सदायें ...... said...

sateek rachna.

पारुल "पुखराज" said...

छलना अक्सर सच की एक कहानी सी लगती ..sach !
मृग तृष्णा में बलुआ धरती पानी सी लगती

परमजीत सिहँ बाली said...

चंद्रभान जी,बहुत ही बेहतरीन व सामयिक रचना है। बधाई स्वीकारें।

इस्मत ज़ैदी said...

शंकाओं ने बोये ऐसे बीज विचारों में
सत्य कहानी लेकिन गलत बयानी सी लगती

बिल्कुल सच्ची बात कही आप ने ,
भरोसे का अभाव समाज में जड़ जमाता जा रहा है,
मतला भी बहुत सुंदर है

इस्मत ज़ैदी said...
This comment has been removed by the author.
अमिताभ मीत said...

बहुत ख़ूब ! बेहतरीन शेर हैं ... सुन्दर रचना !!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

कोख किराये पर मिलती है अब बाजारों में
मूल्यों की हर बात यहाँ बेमानी सी लगती

बहुत अच्छी गज़ल...सारी समस्याओं का वर्णन कर दिया है...

arvind said...

कोख किराये पर मिलती है अब बाजारों में
मूल्यों की हर बात यहाँ बेमानी सी लगती
...jitani bhi prashashaa ki jaaye kam hai...bahut badhiya.

Udan Tashtari said...

बहुत बढि़या!

दिगम्बर नासवा said...

कोख किराये पर मिलती है अब बाजारों में
मूल्यों की हर बात यहाँ बेमानी सी लगती

बेहतरीन .. इतना यथार्थ पूर्ण शेर बहुत समय से नही पढ़ा .... सलाम है आपकी लेखनी को ...

पवन धीमान said...

.....बहुत अर्थपूर्ण गजल

sanu shukla said...

bahut umda,,,,