Sunday, February 21, 2010

हवा आवाज़ देती है

यह ग़ज़ल हिंदी की प्रष्ठभूमि पर हिंदी के संस्कार हिंदी के विन्यास हिंदी का भाषा सौष्ठव हिंदी का शब्द संसार हिंदी के  तेवर और हिंदी की मानसिकता के साथ लिखी है लेकिन अरूज़ का पूरा ध्यान रखा गया है. पाठकों को कहाँ तक प्रभावित करती है यह  उनके विचार जानकर ही पता चलेगा. ग़ज़ल प्रस्तुत है.

दिशा  आवाज़  देती  है   दशा  आवाज़ देती है 
व्यथा जब कुनमुनाती है कथा आवाज़ देती है 

छिटकते हैं  अनोखे  रंग  सहसा  कैनवासों   पर  
मचलती  कूँचियों  को  जब  कला  आवाज़  देती है 

लिखे 'गीतांजली' 'कामायनी' ' साकेत' या 'आंसू' 
कलम को जब ह्रदय की वेदना आवाज़ देती है 

उतरती बंद पलकों पर उभरती स्वप्न में आकर 
किसी तस्वीर को जब कल्पना आवाज़ देती है 

क्षितिज के पार पलता है अलौकिक प्रेम दोनों का 
गगन  नीचे  उतरता  है  धरा  आवाज़  देती   है 

हिमालय सिर झुकाता   और सागर रास्ता देता
उबलते खून को जब हर शिरा आवाज़ देती है

अगम  ऊँचाइयाँ  छूते  गहन  गहराइयाँ   नापें 
अगर  बढ़ते पगों  को साधना आवाज़ देती है 

कठौती में दिखे गंगा दिखे भगवान पत्थर में
जहाँ इक भावना को  आस्था आवाज़ देती है

कदम पथभ्रष्ट हो कर जब कभी पथ से भटकते हैं
सुनो या मत सुनो तुम आत्मा आवाज़ देती है

भले ही शान्ति 'भारद्वाज' हो तूफ़ान से पहले
घटा संकेत करती है हवा आवाज़ देती है

चंद्रभान भारद्वाज

6 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

वाह!! भारद्वाज जी, बहुत ही उम्दा गजल कही है.....हर शेर बहुत बेहतरीन है.....सीधे दिल को छू गई आपकी यह गजल।बधाई स्वीकारें।

vandana gupta said...

गज़ब की प्रस्तुति ............हर शेर लाजवाब...........बहुत ही लयबद्ध, गुनगुना सा अह्सास लिये.

पारुल "पुखराज" said...

अगम ऊँचाइयाँ छूते गहन गहराइयाँ नापें
अगर बढ़ते पगों को साधना आवाज़ देती है
wah.! poori ghazal hii kamaal...bahut khuubsurat

aabhaar

"अर्श" said...

भारद्वाज जी नमस्कार ,
हिंदी की खुबसूरत शब्दों से सजी यह ग़ज़ल जैसे पूरी दुल्हन बनी बैठी है ...
सारे ही अश'आर पसंद आये ,एक ही ग़ज़ल में सारे विषय को समाहित कर लिखना खुद में कौशल की बात है , जो सामने दिख रही है !बधाई इस खुबसूरत ग़ज़ल केलिए ..


अर्श

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

श्रद्धेय भारद्वाज जी, प्रणाम
दिशा आवाज़ देती है.....से लेकर
हवा आवाज़ देती है.....तक
हर शेर में एक खूबसूरत पैग़ाम दिया है आपने....
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कदम पथभ्रष्ट हो कर जब कभी पथ से भटकते हैं
सुनो या मत सुनो तुम आत्मा आवाज़ देती है....
इस शेर पर भी अमल हो, तो जीवन ही बदल जाये

Rajeysha said...

आदरणीय, बहुत ही प्रभावी और सार्थक शेर। समृद्ध रचना पढ़वाने के लि‍ए आभार।