Monday, October 12, 2009

प्रणय - शतक (प्रेमानुभूति का काव्य) - चंद्रभान भारद्वाज

(१)
मेरे दिल को धडकना सिखाती रही ,
मेरे सपनों को उड़ना सिखाती रही ;
मैं तो अनजान था प्यार से वो मगर ,
प्यार का पाठ पढ़ना सिखाती रही।

(२)
आज वह मेरे मन का विषय बन गई,
मेरे चिंतन मनन का विषय बन गई;
प्यार की एक पुस्तक सी मन में लिखी,
वह गहन अध्ययन का विषय बन गई।

(३)
एक मूरत बनाकर सजाया उसे ,
मन के मन्दिर में लाकर बिठाया उसे ;
आरती प्यार की रोज करता हूँ अब,
आँख देखें जिधर सिर्फ़ पाया उसे।

(४)
प्यार हर एक चाहत को मिलता नहीं,
प्यार हर एक हसरत को मिलता नहीं;
प्यार को उसने मुझ पर लुटाया सदा ,
प्यार हर एक किस्मत को मिलता नहीं।

(५)
मैं अकेला खड़ा था कहीं राह में,
बन के पत्थर पड़ा था कहीं राह में;
उसने आकर समेटी मेरी ज़िन्दगी,
मैं तो बिखरा पड़ा था कहीं राह में।

(६)
उसकी यादों को मोती बनाता रहा ,
अपने दिल में उन्हें फ़िर सजाता रहूँ;
तेरी आंखों से आंसू जहाँ भी गिरें,
अपनी पलकों से उनको उठाता रहा ।

(७)
उसकी आवाज़ थी ज़िन्दगी कल मेरी,
बाँका अंदाज़ थी ज़िन्दगी कल मेरी;
गर्व उस पर बहुत यार करता हूँ मैं ,
उससे सरताज थी ज़िन्दगी कल मेरी।

(८)
गम की दुनिया में वह इक खुशी बन गई,
एक पल में मेरी ज़िन्दगी बन गई;
झाँकती मेरी आंखों में उसकी ही छवि ,
मेरे जीवन की वह रोशनी बन गई।

(9)
फूल बन कर सुबह गुदगुदाती थी वह ,
ओस बनकर सुबह नित भिगाती थी वह ;
खुद हवाओं से खुशबू चुराकर सुबह,
गंध बन कर मुझी में समाती थी वह ।

(१०)
दर्द सीने में अपने छिपाता रहा,
रात दिन स्वप्न उसके सजाता रहा;
कोई काँटा न पावों में उसके चुभे ,
उसकी राहों में दिल को बिछाता रहा।

(११)
रात दिन वह ख़यालों में आती रही ,
मेरी साँसों में प्राणों में छाती रही ;
मेरे अरमान सोये पड़े थे कहीं,
बन के सपने उन्हें फ़िर जगाती रही ।

(१२)
जिदगी जबसे मेरी अकेली हुई,
पीर ही सिर्फ़ उसकी सहेली हुई;
उसके जाने से दुनिया ही उजड़ी मेरी ,
ज़िन्दगी फ़िर न दुल्हन नवेली हुई।

(१३)
चाँदनी रात भी अब अँधेरी लगे ,
ज़िंदगी राख की एक ढेरी लगे ;
राह में साथ छोड़ा था उसने जहाँ ,
बस वहाँ से ही दुनिया लुटेरी लगे ।

(१४)
पीर से मेरे प्राणों की शादी हुई,
ज़िन्दगी बस अंधेरों की आदी हुई,
उसकी नज़रों से जब से हुआ दूर हूँ ,
ज़िन्दगी मेरी काँटों की वादी हुई।

(१५)
उसको शायद नहीं कोई अंदाज़ था ,
वह मेरा प्यार जिस पर मुझे नाज़ था ;
नाम से उसके जब नाम मेरा जुडा,
मेरी तकदीर का सर का वह ताज था ।

(१६ )
रिश्ते यादों के सब तोड़ आया हूँ अब ,
हर घरोंदा स्वयं फोड़ आया हूँ अब ;
ज़िंदगी में जहाँ भेंट उससे हुई ,
वह गली और घर छोड़ आया हूँ अब।

(१७)
मन के उपवन में थी वह महकती कली,
मन के आँगन में थी वह चहकती कली;
मेरे जीवन में वह प्राण की डाल पर,
थी महकती चहकती लचकती कली।

(१८)
मेरी बाँहों में वह मेरी चाहों में चाहों वह ,
मेरी मंजिल में वह मेरी राहों में वह ;
मेरे तन मन में वह मेरी नस नस में वह ,
मेरे प्राणों में वह मेरी आहों में वह ।

(१९)
राह मेरी न जाने कहाँ मुड गई,
दिन का सुख रात की नीद भी उड़ गई;
वक्त लाकर खड़ा कर गया है कहाँ,
पीर से सहसा अब ज़िन्दगी जुड़ गई।

(२०)
मेरी धड़कन मेरी जिंदगानी थी वह ,
मेरे दिल पर लिखी इक कहानी थी वह ;
मेरी हर साँस पर राज करती थी वह ,
मेरे सपनों की इक राजधानी थी वह ।

(२१)
मेरी सब प्रार्थनाएं थीं उसके लिए ,
मेरी सब भावनाएं थीं उसके लिए;
मैंने जीवन समर्पित उसे कर दिया,
मेरी सब कामनाएं थीं उसके लिए।

(२२)
मेरा घर द्वार थी मेरा संसार थी ,
मेरे हर एक सपने की हक़दार थी ;
मन के मन्दिर में हर मूर्ति उसकी बनी ,
मेरी पूजा थी वह, वह मेरा प्यार थी ।

(२३)
मेरे भीगे हुए नैन पहले न थे,
मेरे सिसके हुए बैन पहले न थे;
हर तरफ आज बेचैनियों से घिरा ,
प्राण सच ऐसे बेचैन पहले न थे।

(२४)
मेरे हालात उससे छिपे तो न थे ,
मेरे जजबात उससे छिपे तो न थे ;
कैसे तन मन सँभालूँगा उसके बिना ,
यह सवालात उससे छिपे तो न थे ।

(२५)
तेरे हाथों में मेंहदी लगाता रहूँ ,
तेरे कदमों में कलियाँ बिछाता रहूँ;
बन के खुशबू हवाओं में घुलती रहो,
तेरी साँसों को चंदन बनाता रहूँ।

(२६)
मेरी नज़रों में परियों की रानी है तू,
प्यार की एक सुंदर कहानी है तू;
अपनी लहरों में मुझको बहा ले गई,
चढ़ती नदिया की चंचल रवानी है तू।

(२७)
मुझ को अच्छी तरह से यह अहसास है,
मेरा नादान दिल अब तेरे पास है;
इस ज़माने से मुझ को न लेना है कुछ,
मेरे जीवन में अब सिर्फ़ तू खास है।

(२८)
मेरे हाथों की अनमिट लकीरों में तू,
मेरे प्राणों के अनमोल हीरों में तू;
बाँध कर जिनमें रक्खा हुआ है मुझे,
प्यार की अनदिखी उन जंजीरों में तू।

(२९)

जन्म जन्मों का कोई भी रिश्ता है तू,
मेरी नज़रों में कोई फ़रिश्ता है तू;
कच्चे धागे में बांधा हुआ है जिसे,
प्यार का एक बेनाम रिश्ता है तू।

(३०)
राह मेरी अभी तक थी बहकी हुई,
तुम मिले तो लगी राह महकी हुई;
तेरी नज़रों ने जब से छुआ है मुझे,
ज़िन्दगी फ़िर से लगती है चहकी हुई।

(३१)
जब से बाँहों में चाहत सिमटने लगी,
बीच दोनों की दूरी भी घटने लगी;
पाठ कैसा पढ़ा कर गई तू इसे,
ज़िन्दगी नाम तेरा ही रटने लगी।

(३२)
मैं अंधेरे में तुझ को उजारा बनूँ,
जब थको राह में तो सहारा बनूँ,
तेरे आकाश में जितने भी तारे हैं,
उनमें सबसे चमकता सितारा बनूँ।

(३३)
दर्द में जैसे कोई खुशी मिल गई,
घुप अंधेरे में इक रोशनी मिल गई;
द्वार पर मौत आकर खड़ी थी मेरे,
तू मिली तो नई ज़िन्दगी मिल गई।

(३४)
तेरी यादों का इक सिलसिला मिल गया,
मेरे सपनों को इक घोंसला मिल गया;
बंद धड़कन जगा दी है तूने मेरी,
मैं अकेला था अब काफिला मिल गया।

(३५)
मेरे एकाकी जीवन की है मीत तू,
मेरी सुनसान राहों का संगीत तू;
मैं तो बैठा हुआ हार कर ज़िन्दगी,
मेरे हारे हुए मन की है जीत तू।

(३६)
पहले आना न था पहले जाना न था,
अपना रिश्ता भी कोई पुराना न था;
जब से तू मिल गई तब से लगने लगा,
ज़िन्दगी में तेरे बिन ठिकाना न था।

(३७)
मेरा मकसद है तू मेरी मंजिल है तू,
मेरे जीवन के कण कण में शामिल है तू;
मेरे सीने में हर दम धड़कता है जो,
मेरा नाज़ुक सा मासूम सा दिल है तू।

(३८)
मेरी साँसों में खुशबू महकती तेरी,
मेरे कानों में आहट खनकती तेरी;
मैं रखूँ खोल कर या रखूँ बंद मै,
मेरी आंखों में सूरत चमकती तेरी।

(३९)
मेरे सपनों में छाई है तेरी हँसी,
मेरे दिल में समाई है तेरी हँसी;
मेरी आंखों से आंसू निकलने लगे,
याद जब जब भी आई है तेरी हँसी।

(४०)
पहले मेरा कहीं भी ठिकाना न था,
कोई बैठक कोई आशियाना न था;
जब से तू मिल गई ज़िन्दगी मिल गई,
वरना जीने का कोई बहाना न था।

(४१)
मेरे सपनों का संसार तेरे लिए,
मेरी यादों का भण्डार तेरे लिए;
मेरे मन की तहों में सहेजा हुआ,
ज़िन्दगी भर का सब प्यार तेरे लिए।

(४२)
मुझ को दुनिया के आचार जमते नहीं,
भाव मन के कहीं और रमते नहीं;
तेरी यादों में जब भी विचरता है मन,
मेरे आँसू भी आंखों में थमते नहीं।

(४३)
जागता मैं रहा या कि सोता रहा,
तेरी यादों में हर वक्त खोता रहा;
एक हलचल सदा मन को मथती रही,
तब अकेले में अक्सर मैं रोता रहा।

(४४)
जब भी लिखता हूँ मैं जब भी पढ़ता हूँ मैं,
सिर्फ़ मूरत सदा तेरी गढ़ता हूँ मैं;
तेरी तस्वीर मन में सुरक्षित रहे,
भावनाओं के शीशे में मढ़ता हूं मैं।

(४५)
तेरा चेहरा नज़र से निकलता नहीं,
लाख समझाया दिल पर बहलता नहीं;
हार कर दिल से बैठा दुआ आज मैं,
मेरा दिल मुझ से बिल्कुल संभलता नहीं।

(४६)
अपनी बेचैनियों को बताऊँ किसे,
दिल में तूफ़ान उठता दिखाऊँ किसे;
छोड़ कर मुझ को अधबीच में तू गई,
यह अधूरी कहानी सुनाऊँ किसे।

(४७)
छोड़ आया था संसार का रास्ता,
भूल बैठा था मैं प्यार का रास्ता;
तू बता कर गई मुझ को अपना पता,
ढूँढता अब मैं उस द्वार का रास्ता।

(४८)
तेरी खुशबू अभी मेरी साँसों में है,
तेरा सपना अभी मेरी आँखों में है;
अब तो तू बन गई है मेरी ज़िन्दगी,
तेरी सूरत अभी मेरे प्राणों में है।

(४९)
तेरी छवि के सिवा कुछ दिखाई न दे,
तेरे स्वर के सिवा कुछ सुनाई न दे;
तेरे दामन को खुशियों से भरता रहूँ ,
मुझ को इस के सिवा कुछ सुझाई न दे।

(५०)
हर सुबह याद तेरी जगाती मुझे,
रात को याद तेरी सुलाती मुझे;
मुझको बेचैनियों ने रखा घेर कर,
हर समय याद तेरी सताती मुझे।

(५१)
मेरी साँसों की तू अब हवा बन गई,
थी इकाई मगर अब सवा बन गई;
सालते जो रहे ज़िन्दगी भर मुझे,
रिसते घावों की तू अब दवा बन गई।

(५२)
तेरा चेहरा नज़र में समाया हुआ,
मेरा मन तेरे रँग में नहाया हुआ;
भूल पाता नहीं एक पल भी तुझे,
तेरा ऐसा नशा मुझ पे छाया हुआ।

(५३)
देखता है सुबह को न अब शाम को,
रटता रहता है मन बस तेरे नाम को;
हद से बढ़ने लगी इसकी दीवानगी,
झेलूँ कब तक बता इसके परिणाम को।

(५४)
बहके कदमों को अब इक सहारा मिला,
डूबती नाव को इक किनारा मिला;
मेरे जीवन को तू इक दिशा दे गई,
मन के मरुथल में इक जल की धारा है तू।

(५५)
मेरे मन में बसीं तेरी परछाइयाँ ,
मेरी साँसों में हैं तेरी शहनाइयाँ;
मेरी सूनी निगाहों में फैली हुईं,
बिन तेरे हर तरफ़ सिर्फ़ तन्हाइयां।

(५६)
तेरी यादों से दिन की शुरूआत अब,
तेरे सपनों में गुज़रे हरिक रात अब;
मेरा तन मन रमा है तेरे ध्यान में,
मेरे प्राणों को तू एक सौगात अब।

(५७)
घूमता तेरे बिन पागलों की तरह,
बे सहारा हुआ बादलों की तरह;
तेरी यादों ने बेचैन इतना किया,
आह भरता हूँ मैं घायलों की तरह।

(५८)
मेरे मन को सदा गुदगुदाती है तू,
मेरे मन पर लिखी प्रेम पाती है तू;
तूने जीवन मेरा रोशनी से भरा,
प्रेम दीपक की इक जलती बाती है तू।

(५९)
एक मूरत गढ़ी है तेरी नेह की,
उसमें खुशबू भरी है तेरी देह की;
याद तेरी भिगोती रही इस तरह,
जैसे बूँदें भिगोतीं रहीं मेह की।

(६०)
मेरा सपना है तू मेरी चाहत है तू,
मेरी कमजोरी तू मेरी ताकत है तू;
तुझ को पाकर बहुत गर्व करता हूँ मैं,
मेरा इमान तू मेरी इज्जत है तू।

(६१)
मेरी नज़रों में तू एक कोमल कली,
धूप में ही खिली धूप में ही पली;
छाँह बन कर तेरे मैं रहूँ साथ में,
बस महकती रहे मेरे मन की गली।

(६२)
तेरी तसवीर में रंग भरता रहा,
तेरी आँखों में गहरे उतरता रहा;
तुझ को मालूम था या नहीं क्या पता,
चुपके चुपके तुझे प्यार करता रहा।

(६३)
खुशबू बन तेरे तन पर बिखर जाऊँ मैं,
बन के सपना पलक पर उतर जाऊँ मैं;
रात दिन एक चाहत रही है मेरी,
तेरे आँचल को खुशियों से भर जाऊँ मैं।

(६४)
तेरी खशबू यहाँ तेरी खुशबू वहाँ,
पर दिखाई न दे तुझ को देखूं कहाँ;
इतना अपना पता तो बता दे मुझे,
तुझ को आँखों से अपनी निहारूं कहाँ।

(६५)
सूर्य की हर किरण रोशनी दे तुझे,
हर सुबह इक नई ज़िन्दगी दे तुझे;
तेरे दामन में खुशियाँ समांयें नहीं,
मेरा सतसांई इतनी खुशी दे तुझे।

(६६)
मैं न समझा कि संसार क्या चीज है,
इसके इस पार उस पर क्या चीज है;
तू मिली तो समझने लगा आज मैं,
ज़िन्दगी के लिए प्यार क्या चीज है।

(६७)
दर्द रह रह के उठता है दिल में मेरे,
इक धुंआ सा घुमड़ता है दिल में मेरे;
साँस रूकती मेरी दम निकलता मेरा,
ख्याल तेरा उमड़ता है दिल में मेरे।

(६८)
मेरी हर आस तू मेरा उल्लास तू,
तू मेरी आस्था मेरा विश्वास तू;
मेरे डूबे सितारे चमकने लगे,
मेरे जीवन में जब आ गई पास तू।

(६९)
तेरी यादों में गहरे उतरता हूँ मैं,
तेरी तसवीर में रंग भरता हूँ मैं;
तुझ को मालूम इतना नहीं अब तलक,
हद से ज्यादा तुझे प्यार करता हूँ मैं।

(७०)
मेरे मन में तेरी जब से चाहत जगी,
हद से बढ़ने लगी मेरी दीवानगी;
मुझ को तेरे सिवा कुछ दिखाई न दे,
तेरी यादें बनीं अब मेरी जिंदगी।

(७१)
मेरे मन के उजालों में रहती है तू,
मेरे उलझे सवालों में रहती है तू;
हाल कैसे बताऊँ मैं दिल का तुझे,
मेरे हरदम खयालों में रहती है तू।

(७२)
डाल से टूटे पत्ते सा उड़ना पडा,
मुझ को मिलने से पहले बिछुड़ना पड़ा;
प्यार में वह सजा दी गई है मुझे,
मुझ को हर रोज सूली पे चढ़ना पड़ा।

(७३)
मेरी आँखों को सपना दिखाया तूने,
मेरी साँसों को चलना सिखाया तूने;
मैं तो बैठा था चुपचाप थक हार कर,
प्यार की राह पर फ़िर चलाया तूने।

(७४)
मेरी शोहरत है तू मेरी इज्जत है तू,
मेरे जीवन की अब इक जरूरत है तू;
मेरे हाथों की अनमिट लकीरों में तू,
मेरे माथे पे लिक्खी वो किस्मत है तू।

(७५)
यों मिलेंगे सुबह शाम सोचा न था,
यों जुडेंगे दोनों नाम सोचा न था;
दिल की बेचैनियाँ हद से बढ़ने लगीं,
प्यार का ऐसा अंजाम सोचा न था।

(७६)
दीप का रोशनी से जो रिश्ता रहा,
चाँद का चाँदनी से जो रिश्ता रहा;
फूल का और खुशबू का रिश्ता है यह,
मेरे जीवन से तेरा जो रिश्ता रहा।

(७७)
तुम मिले तो डगर में उजाले हुए,
मेरे जीवन के रँग ढँग निराले हुए;
देख कर तुझ को साकार होने लगे,
मैंने आँखों में सपने जो पाले हुए।

(७८)
मेरे होठों पे तू एक मुस्कान है,
मेरी आँखों में सपनों का प्रतिमान है;
मेरे प्राणों में हर वक्त बजती हुई,
कोई संगीत की तू मधुर तान है।

(७९)
तेरे होठों की मुस्कान कितनी भली,
ओस में जैसे भीगी हो कोई कली;
तेरी खुशबू से हर पल महकती है अब,
मेरे तन की डगर मेरे मन की गली।

(८०)
रात दिन तेरी चिंता सताती मुझे,
याद हर वक्त अब तेरी आती मुझे;
मेरे कानों में अब गूँजते तेरे स्वर,
जैसे आवाज़ दे तू बुलाती मुझे।

(८१)
धूप में तुझ को मैं छाँह बन कर रहूँ,
राह में तुझ को मैं बाँह बन कर रहूँ;
तेरे जीवन में मैं इस तरह से घुलूं,
तेरे मन में सदा चाह बन कर रहूँ।

(८२)
तेरी हिम्मत पे मुझ को भरोसा बहुत,
तेरी ताकत पे मुझ को भरोसा बहुत;
एक दिन देखना ख़ुद ही चमकेगी यह,
तेरी किस्मत पे मुझ को भरोसा बहुत।

(८३)
मेरे तन में है तू मेरे मन में है तू,
मेरी साँसों के हर एक कण में है तू;
मैं जिधर देखता तू ही तू दीखती ,
मेरी धरती में तू है गगन में है तू।

(८४)
खून बन कर शिराओं में बहती है तू,
मेरी आँखों के सपनों को तहती है तू;
बंद कर आँख मैं देख लेता तुझे,
मेरे मन के झरोखों में रहती है तू।

(८५)
साथ रहतीं मेरे मेरी तन्हाइयाँ,
झाँकतीं तेरी यादों की परछाइयाँ ;
मैं अकेले में महसूस करता हूँ अब,
तेरी सच्चाइयाँ, तेरी अच्छाइयाँ।

(८६)
दिन निकलते ही अब याद आती तेरी ,
शाम ढलते ही अब याद आती तेरी;
मेरी नस नस में अब तेरी यादें बसीं,
दीप जलते ही अब याद आती तेरी।

(८७)
मेरे हालात को तू समझ तो सही,
मेरे ज़ज़बात को तू समझ तो सही;
एक पल भी न हटती मेरे दिल से तू,
मेरी इस बात को तू समझ तो सही।

(८८)
तेरे संदेश अब दिल के आधार हैं,
जोड़ते हैं दिलों को ये वो तार हैं;
आँसुओं में डुबोकर कलम जो लिखे,
मेरे पिघले हुए दिल के उदगार हैं ।

(८९)
मेरा तन मन है तू मेरा जीवन है तू,
मेरा दर्शन है तू मेरा चिंतन है तू;
तू लहू बन के नस नस में बहती है अब,
मेरा अस्तित्व तू दिल की धड़कन है तू।

(९०)
चाहता मन तेरे साथ बैठा रहूँ,
डाल कर हाथ में हाथ बैठा रहूँ;
खेलता ही रहूँ तेरे बालों से मैं,
गोद में ले तेरा माथ बैठा रहूँ।

(९१)
मेरे मन पर बनी इक राँगोली है तू,
मेरे माथे का चंदन है रोली है तू;
जग की हर बदनज़र से बचाऊँ तुझे,
अति ही सीधी है तू अति ही भोली है तू।

(९२)
मेरा तेरा ये रिश्ता न टूटे कभी,
संग मेरा व तेरा न छूटे कभी;
तन भले दो रहें मन मगर एक हों,
मैं न रूँठूँ कभी तू न रूँठे कभी।

(९३)
याद तेरी कभी तो रुलाती मुझे,
याद तेरी कभी फ़िर हँसाती मुझे;
मेरा हर रोम महसूस करता तुझे,
तू छकाती मुझे गुदगुदाती मुझे।

(९४)
याद तेरी मेरे दिल से जाती नहीं,
नीद अब मेरी आँखों में आती नहीं;
रात करवट बदल कर गुजरती मेरी,
दिन में चर्चा किसी की सुहाती नहीं।

(९५)
तू मेरी प्रेरणा मेरा उत्साह तू,
मन में जागी हुई इक नई चाह तू;
बन गई ज़िन्दगी इक सुहाना सफर,
जब से आकर बनी मेरी हमराह तू।

(९६)
दिन गुजरता नहीं रात कटती नहीं,
याद तेरी मेरे दिल से हटती नहीं;
मेरे तन मन में है सिर्फ़ चाहत तेरी,
प्यास मिटती नहीं आस घटती नहीं।

(९७)
तेरे प्राणों की इज्जत समझता हूँ मैं,
तेरे आँसू की कीमत समझता हूँ मैं;
तेरे बिन ज़िन्दगी मेरी कुछ भी नहीं,
तेरी संगति की ताकत समझता हूँ मैं।

(९८)
याद जाती नहीं नींद आती नहीं,
बात दुनिया की कोई भी भाती नहीं ;
जिसमें होता नहीं जिक्र कोई तेरा ,
ऐसी चर्चा मुझे अब सुहाती नहीं।

(९९)
बात का कोई भी हल सुझाई न दे,
राह आगे की कोई दिखाई न दे;
होने लगता है बेचैन क्यों मेरा दिल,
तेरी आवाज़ जिस दिन सुनाई न दे।

(१००)
मुझ पे छाई है बन एक उन्माद तू,
मेरी नस नस में है सिर्फ़ आबाद तू;
मैंने देखा नहीं है कभी कोई पल,
जिसमें आई नहीं है मुझे याद तू। ,

चंद्रभान भारद्वाज

3 comments:

arvind said...

aapka pranay shatak---nischit hi pyar ke khel kaa sabse khubsurat shatak hai, achha likha hai, subhkamnayeN
.
pls visit krantidut.blogspot.com

Randhir Singh Suman said...

मुझ पे छाई है बन एक उन्माद तू,
मेरी नस नस में है सिर्फ़ आबाद तू;
मैंने देखा नहीं है कभी कोई पल,
जिसमें आई नहीं है मुझे याद तू। nice,

Prabhu Trivedi said...

khushiya louti bandhuvar ,
sukhamay hua pratit.
dil ki veena par baje,
madhumay yah sangeet.

yah raja bhartari ki atma ka sanchar he. bahut bahut badhai.