तन के आँगन में वर्षा हुई प्यार की;
मन में बहने लगी इक नदी प्यार की।
चार पल ही बिताये कभी साथ में,
लगता जी ली हो पूरी सदी प्यार की
स्वाद अब और कोई सुहाता नहीं,
जब से प्राणों ने बूटी चखी प्यार की।
घुल गई है हवाओं में चारों तरफ़,
ऐसी साँसों में खुशबू भरी प्यार की।
ज़िन्दगी में अँधेरे रहे ही नहीं,
देख ली है नई रोशनी प्यार की।
कोरे मन पर उभरते रहे शेर सब,
जब नज़र ने ग़ज़ल इक लिखी प्यार की।
कामनाओं का वन लहलहाने लगा,
मिल गई जब जड़ों को नमी प्यार की।
वह समझने लगा बादशाहत मिली,
जिसको भी मिल गई इक कनी प्यार की।
टीस बन कर उभरती रहे उम्र भर,
हो 'भरद्वाज' यदि इक कमी प्यार की।
चंद्रभान भारद्वाज
लगता जी ली हो पूरी सदी प्यार की
जब से प्राणों ने बूटी चखी प्यार की।
घुल गई है हवाओं में चारों तरफ़,
ऐसी साँसों में खुशबू भरी प्यार की।
ज़िन्दगी में अँधेरे रहे ही नहीं,
कोरे मन पर उभरते रहे शेर सब,
जब नज़र ने ग़ज़ल इक लिखी प्यार की।
कामनाओं का वन लहलहाने लगा,
मिल गई जब जड़ों को नमी प्यार की।
वह समझने लगा बादशाहत मिली,
जिसको भी मिल गई इक कनी प्यार की।
टीस बन कर उभरती रहे उम्र भर,
हो 'भरद्वाज' यदि इक कमी प्यार की।
चंद्रभान भारद्वाज
2 comments:
waah waah waah waah.........pyar ke rang mein duba diya aapki rachna ne .............adbhut likha hai................sach pyar ki nadi aisi hi honi chahiye......amazing
कोरे मन पर उभरते रहे शेर सब,
जब नज़र ने ग़ज़ल इक लिखी प्यार की।
बहुत सुंदर...!!
वह समझने लगा बादशाहत मिली,
जिसको भी मिल गई इक कनी प्यार की।
बहुत खूब .......!!
भारद्वाज जी बहुत अच्छा लिख रहे हो तुसीं ......!!
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