Tuesday, May 5, 2009

एक सपना पलक पर सजा तो सही

ज़िन्दगी को कभी आजमा तो सही;
एक सपना पलक पर सजा तो सही।

पाँव ऊँचाइयों के शिखर छू सकें,
सोच को पंख अपने लगा तो सही।

बाजुओं में सिमट आएगा यह गगन,
कोई कोना पकड़ कर झुका तो सही।

मोम पत्थर गला कर बनाती है वो,
आग सीने में थोडी जला तो सही।

कर न परवाह ऊँची लहर की अभी,
रेत का इक घरोंदा बना तो सही।

आँधियाँ राह अपनी निकल जाएँगी,
डालियाँ सब अहम् की नवा तो सही।

एक दिन लोग ईसा बना देंगे ख़ुद,
पहले सूली पे ख़ुद को चढ़ा तो सही।

खोलता द्वार अवसर सभी के लिए,
बस किवाड़ें तनिक खटखटा तो सही।

प्यार को अर्घ्य देना 'भरद्वाज' पर,
आंसुओं की नदी में नहा तो सही।

चंद्रभान भारद्वाज

5 comments:

कंचन सिंह चौहान said...

बाजुओं में सिमट आएगा यह गगन,
कोई कोना पकड़ कर झुका तो सही।

कर न परवाह ऊँची लहर की अभी,
रेत का इक घरोंदा बना तो सही।
आँधियाँ राह अपनी निकल जाएँगी,
डालियाँ सब अहम् की नवा तो सही।

एक दिन लोग ईसा बना देंगे ख़ुद,
पहले सूली पे ख़ुद को चढ़ा तो सही।

खोलता द्वार अवसर सभी के लिए,
बस किवाड़ें तनिक खटखटा तो सही।

मजबीत इरादों को जगाती इस गज़ल का शुक्रिया

"अर्श" said...

NAMASKAAR,
BAHOT HI SARAL BHAASHAA ME LIKHI HAI AAPNE YE GAZAL JITNI SARAL HAI UTNI HI TARALATA SE JAHAN ME UTARTI GAYEE,,.. DHERO BADHAAYEE AAPKO..

SAADAR
ARSH

शोभा said...

एक दिन लोग ईसा बना देंगे ख़ुद,
पहले सूली पे ख़ुद को चढ़ा तो सही।

खोलता द्वार अवसर सभी के लिए,
बस किवाड़ें तनिक खटखटा तो सही।

प्यार को अर्घ्य देना 'भरद्वाज' पर,
आंसुओं की नदी में नहा तो सही।

bahut sundar

हरकीरत ' हीर' said...

बाजुओं में सिमट आएगा यह गगन,
कोई कोना पकड़ कर झुका तो सही।
बहूत खूब....!!

आँधियाँ राह अपनी निकल जाएँगी,
डालियाँ सब अहम् की नवा तो सही।
लाजवाब.....!!

खोलता द्वार अवसर सभी के लिए,
बस किवाड़ें तनिक खटखटा तो सही।

सभी शे'र तारीफेकाबिल हैं ....!!

निर्मला कपिला said...

ऐसी सुन्दर गज़ल कभी कभी ही पध्ने को मिलती है बहुत बहुत बधाई