चार तिनके जुटा घोंसला तो बना;
ज़िन्दगी का कहीं सिलसिला तो बना।
इक पहल एक रिश्ता बने ना बने,
जान पहचान का मामला तो बना।
कुछ कदम तुम बढ़े कुछ कदम हम बढ़े, ,
कर गुजरने का कुछ हौसला तो बना।
ज़िन्दगी एक ठहरी हुई झील है,
कर तरंगित कहीं बुलबुला तो बना।
सन्न सुनसान में एक आवाज दे,
गूँज से जोश का जलजला तो बना।
फ़िर बनाना कभी ताज सा इक महल,
प्यार में प्राण को बावला तो बना।
यह ज़माना नहीं है भला ना सही,
पर 'भरद्वाज' ख़ुद को भला तो बना।
चंद्रभान भारद्वाज
5 comments:
भारद्वाज साहिब नमस्कार,
बहोत ही खुबसूरत मतले के साथ एक खुबसूरत उतर के आई है ...इसका मतला तो कहर बरपा रहा है... बहोत ही शानदार काफिये रदीफ़ के साथ साथ चुस्त बहर पे सजी ये ग़ज़ल.. बहोत बहोत बधाई..
आपको..
अर्श
सन्न सुनसान में एक आवाज दे,
गूँज से जोश का जलजला तो बना।
bahut hi sundar ghzal hai.
sabhi 'sher josh bharne wale hain
aap ko padhtey hain kuchh na kuchh sikhtey hain.
बहुत बढिया गज़ल है।बधाई।
shaabasho
कर तरंगित कहीं बुलबुला तो बना।
jabardast
"इक पहल एक रिश्ता बने ना बने/जान पहचान का मामला तो बना"
ये शेर खूब भाया
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