नीद की इक किताब रखना;
करवटों का हिसाब रखना।
पत्थरों का मिजाज़ पढ़ना,
हाथ में फ़िर गुलाब रखना।
हर डगर में सवाल होंगे,
हर कदम पर जवाब रखना।
धड़कनों में जूनून कोई,
साँस में इन्कलाब रखना।
आग रखना जली जिगर में,
आँख झेलम चनाब रखना।
वक्त सबको सिखा रहा है,
बस जड़ों में तेजाब रखना।
छोड़ अब 'भारद्वाज' अपने,
चेहरे पर नकाब रखना।
चंद्रभान भारद्वाज
8 comments:
आग रखना जली जिगर में,
आँख झेलम चनाब रखना।
छोटे बहर की बडी प्यारी ग़ज़ल है. शुक्रिया.
bahut hi behtreen ghazal hai,
पत्थरों का मिजाज़ पढ़ना,
हाथ में फ़िर गुलाब रखना।
हर डगर में सवाल होंगे,
हर कदम पर जवाब रखना।
धड़कनों में जूनून कोई,
साँस में इन्कलाब रखना।
lajwab !!
Bhardwaj ji namaskar,
aapke gazal ka to main murid hun ,mere jaisa adana kya waah waah kare aap jaise shaksiyat pe ,kis she'r pe daad hun samajh nahi aata ,sabhi she'r ek se badhkar ek.... dil jeet liya aapne ... dhero badhai kubul karen aap...
apka
arsh
हर डगर में सवाल होंगे,
हर कदम पर जवाब रखना।
धड़कनों में जूनून कोई,
साँस में इन्कलाब रखना।
आग रखना जली जिगर में,
आँख झेलम चनाब रखना।
bahut khub
आग रखना जली जिगर में,
आँख झेलम चनाब रखना।
लाजवाब...वाह...क्या कहूँ...???
नीरज
एक बार फिर एक बढ़िया ग़ज़ल, कौन से शेर की तारीफ़ करूँ और कौन-सा छोड़ दूँ हर शेर अपने आपमें मुकम्मल है। बधाई।
अद्भुत सर...अद्भुत "आग रखना जली जिगर में/आँख झेलम चनाब रखना"
बहुत खूब
Bhai Ishta Deo Sankratyayan ji
Bhai Satpal ji
Bhai Arsh ji
Madam Shobha ji
Bhai Neeraj Goswami ji
Bhai Prakash Badal ji
Bhai Gautam Rajrishi ji
aap sabaki comments ke liye abhari hoon.
Chandrabhan Bhaardwaj
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