इक ज़िन्दगी में जब कहीं दिलबर नहीं होता
होते दरो-दीवार तो पर घर नहीं होता
जिसकी नसों में आग का दरिया न बहता हो
जिसकी नसों में आग का दरिया न बहता हो
काबिल भले हो वह मगर शायर नहीं होता
लहरें न उठतीं हों नहीं तूफ़ान ही आते
लहरें न उठतीं हों नहीं तूफ़ान ही आते
सूखा हुआ तालाब इक सागर नहीं होता
जो नब्ज पहचाने न समझे धड़कनें दिल की
जो नब्ज पहचाने न समझे धड़कनें दिल की
होता है सौदागर वो चारागर नहीं होता
उमड़ीं घटायें जब कभी बिन प्यार के बरसीं
उमड़ीं घटायें जब कभी बिन प्यार के बरसीं
तन भीग जाता है मगर मन तर नहीं होता
यादों की खुशबू से अगर दालान भर जाते
यादों की खुशबू से अगर दालान भर जाते
गुलज़ार सपनों का महल खँडहर नहीं होता
यदि प्यार के बीजों में अंकुर फूटते पहले
यदि प्यार के बीजों में अंकुर फूटते पहले
तो खेत 'भारद्वाज' का बंजर नहीं होता
चंद्रभान भारद्वाज
चंद्रभान भारद्वाज
9 comments:
उमड़ीं घटायें जब कभी बिन प्यार के बरसीं
तन भीग जाता है मगर मन तर नहीं होता
यादों की खुशबू से अगर दालान भर जाते
गुलज़ार सपनों का महल खँडहर नहीं होता
खूबसूरत गज़ल
इक ज़िन्दगी में जब कहीं दिलबर नहीं होता
होते दरो-दीवार तो पर घर नहीं होता
जिसकी नसों में आग का दरिया न बहता हो
काबिल भले हो वह मगर शायर नहीं होता
उमड़ीं घटायें जब कभी बिन प्यार के बरसीं
तन भीग जाता है मगर मन तर नहीं होता
यदि प्यार के बीजों में अंकुर फूटते पहले
तो खेत 'भारद्वाज' का बंजर नहीं होता
भारद्वाज जी आपकी गज़ल का हर शेर अन्दर तक भिगो जाता है…………हमेशा की तरह बेहतरीन्।
आदरणीय चंद्रभान भारद्वाज जी
सादर प्रणाम !
जिसकी नसों में आग का दरिया न बहता हो
काबिल भले हो वह मगर शायर नहीं होता
# रचना की आग से मुक्त होने , उसमें न तपने की नसीहत भोले लोग दे जाएं तो क्या कीजे ? :) … निःसंदेह उनके लिए दुआओं के अलावा आप-हम क्या करें … शायरी आपकी-हमारी रग़ों में जो है … :)
उमड़ीं घटायें जब कभी बिन प्यार के बरसीं
तन भीग जाता है मगर मन तर नहीं होता
हर शे'र उम्दा ! पूरी ग़ज़ल तारीफ़ के काबिल !
हार्दिक बधाई और शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
Sangeeta Swaroop ji, Vandana ji avam Bhai Rajendra ji Apki tippadiyan kitani prerana deti hain aap andaz nahin laga sakate. Abhar vyakt karana ek rasme adai hai fir bhi main aap sabaka hridaya se abhari hoon
vah sir ! aapne to astitva yad dila diya .bahut sunder nazm .sadhuvad .
लहरें न उठतीं हों नहीं तूफ़ान ही आते
सूखा हुआ तालाब इक सागर नहीं होता
वाह ...बहुत ही अच्छा लिखा है ... आभार इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिये ।
वाह ! चंद्रभान जी,
इस खूबसूरत गज़ल का तो जवाब नहीं !
पूरी गज़ल बहुत ही खूब.कुछ भी छोड़ दूं तो नाइंसाफी होगी
http://sanjaybhaskar.blogspot.com/
यादों की खुशबू से अगर दालान भर जाते
गुलज़ार सपनों का महल खँडहर नहीं होता
वाह .. क्या एहसास है इन गज़लों में
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