मैं सच को इस तरह साबित नहीं करता तो क्या करता
कदम अपने अँगारों पर नहीं धरता तो क्या करता
लगा दे दाँव पर जब प्यार अपनी मान मर्यादा
निछावर प्राण फिर उस पर नहीं करता तो क्या करता
सितम जीने नहीं देता रहम मरने नहीं देता
अगर इंसान जीते जी नहीं मरता तो क्या करता
न तो जड़ ने रखा मतलब न रक्खा डाल ने रिश्ता
बता सूखा हुआ पत्ता नहीं झरता तो क्या करता
कोई रिश्ता अगर कमजोर नस बनकर उभर आए
तो उस पर उँगली रखने से नहीं डरता तो क्या करता
रहीं कमजोरियाँ उसकी मगर सिर पर मढ़ीं मेरे
मैं उसका खामियाजा गर नहीं भरता तो क्या करता
प्रणय में दर्द जब आनंद का अहसास देता हो
तो 'भारद्वाज' पीड़ा को नहीं वरता तो क्या करता
चंद्रभान भारद्वाज
Sunday, June 20, 2010
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12 comments:
किस किस शेर को कोट करूँ हर एक लाजवाब बधाई
जीवन की पीड़ा को बहुत सधे हुए तरीके से उठाया है
सितम जीने नहीं देता रहम मरने नहीं देता
अगर इंसान जीते जी नहीं मरता तो क्या करता
न तो जड़ ने रखा मतलब न रक्खा डाल ने रिश्ता
बता सूखा हुआ पत्ता नहीं झरता तो क्या करता
बहुत उम्दा!,
ज़हनों को झक्झोरते हुए अश’आर हैं, बहुत ख़ूब!
न तो जड़ ने रखा मतलब न रक्खा डाल ने रिश्ता
बता सूखा हुआ पत्ता नहीं झरता तो क्या करता
कोई रिश्ता अगर कमजोर नस बनकर उभर आए
तो उस पर उँगली रखने से नहीं डरता तो क्या करता
आदरणीय भारद्वाज जी प्रणाम...आपके अशआरों की तारीफ़ लफ़्ज़ों में ना मुमकिन है...बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने...वाह...मेरा नमन स्वीकारें.
नीरज
हर एक शेर उम्दा
मैं आपकी गजलों का कायल हूँ हर एक गजल से बार बार और बहुत कुछ सीखने को मिला है
आपको बहुत बहुत शुक्रिया
bahut sundar bahut sundar....!!!
सितम जीने नहीं देता रहम मरने नहीं देता
अगर इंसान जीते जी नहीं मरता तो क्या करता
बहुत उम्दा शेर है...
न तो जड़ ने रखा मतलब न रक्खा डाल ने रिश्ता
बता सूखा हुआ पत्ता नहीं झरता तो क्या करता
वाह.....नयापन है शेर में
वो कहा है न
काफ़िला सुस्त मुसाफ़िर को सज़ा देता है
ज़र्द पत्ते को हर इक पेड़ गिरा देता है
सितम जीने नहीं देता रहम मरने नहीं देता, वाकई ये जिन्दगी एक काकरोच की तरह सामने आ जाती है, समझ में नहीं आता मारें या ना मारें या झाड़ू से बुहार कर बाहर कर दें
bharduaj ji
you are great .
न तो जड़ ने रखा मतलब न रक्खा डाल ने रिश्ता
बता सूखा हुआ पत्ता नहीं झरता तो क्या करता
रहीं कमजोरियाँ उसकी मगर सिर पर मढ़ीं मेरे
मैं उसका खामियाजा गर नहीं भरता तो क्या करता
बेहतरीन पंक्तियाँ ... दिलकश भावनाएं ... पढ़कर बहुत अच्छा लगा !
कोई रिश्ता अगर कमजोर नस बनकर उभर आए
तो उस पर उँगली रखने से नहीं डरता तो क्या करता
रहीं कमजोरियाँ उसकी मगर सिर पर मढ़ीं मेरे
मैं उसका खामियाजा गर नहीं भरता तो क्या करता
बहुत खूब जनाब......पूरी कि पूरी ग़ज़ल बेहतरीन है. ऊपर के दो शेरों पर ढेरों दाद
हमेशा की तरह फिर वही बादशाहत दिखी आपकी ग़ज़ल में ... बधाई कुबूल फरमाएं
अर्श
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