वसीयत भी नहीं कोई विरासत भी नहीं कोई
हमें ऐ ज़िन्दगी तुझ से शिकायत भी नहीं कोई
रहा खुद पर भरोसा या रहा है सिर्फ ईश्वर पर
सिवा इसके हमारे पास ताकत भी नहीं कोई
मिले बस चैन दिन का और गहरी नीद रातों की
हमें अतिरिक्त इसके और चाहत भी नहीं कोई
खड़ा है कठघरे में सिर्फ अपना सच गवाही को
हमारे पक्ष में करता वकालत भी नहीं कोई
करे जो दूध का तो दूध पानी का करे पानी
बिके सब हंस अब उनमें दयानत भी नहीं कोई
हवा का देख कर रुख लोग अपना रुख बदलते हैं
हवा को ही बदल दे ऐसी हिकमत भी नहीं कोई
हमारे नाम का उल्लेख 'भारद्वाज' हो जिसमें
कहानी भी नहीं कोई कहावत भी नहीं कोई
चंद्रभान भारद्वाज
Saturday, April 24, 2010
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6 comments:
badi pyari ghazal hai sir. :)
खड़ा है कठघरे में सिर्फ अपना सच गवाही को
हमारे पक्ष में करता वकालत भी नहीं कोई
bahut khoob....
बहुत सुन्दर है सर जी ! एक से बढ़कर एक शेर है और पूरा ग़ज़ल जैसे एक खुबसूरत महल है ! आपकी ग़ज़ल पढ़कर बहुत अच्छा लगा ।
खड़ा है कठघरे में सिर्फ अपना सच गवाही को
हमारे पक्ष में करता वकालत भी नहीं कोई
आदरणीय भारद्वाज जी, कितना सच्चा शेर कहा है...
हवा का देख कर रुख लोग अपना रुख बदलते हैं
हवा को ही बदल दे ऐसी हिकमत भी नहीं कोई
जीवन का यथार्थ बयान किया है आपने
श्रद्धेय भारद्वाज जी
नमस्ते
देर से आने के लिए माफी चाहता हूँ
गजल उस दिन ही पढ़ ली थी और पसंद आई
रहा खुद पर भरोसा या रहा है सिर्फ ईश्वर पर
सिवा इसके हमारे पास ताकत भी नहीं कोई
मिले बस चैन दिन का और गहरी नीद रातों की
हमें अतिरिक्त इसके और चाहत भी नहीं कोई
यह शेर बहुत बहुत पसंद आये
aap ka lekhan ab bhut gnbheerta ko praapt ho gaya hai. yh ek accha sanket hai . hindi gajal ko uchaiyan dene main aapkee bhumika hamesha yad atee hai.
Rakesh
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