बता कर कुछ न कुछ कमियाँ निगाहों से गिराता है;
ज़माना नेक नीयत पर भी अब ऊँगली उठाता है।
समझता ख़ुद के काले कारनामों को बहुत उजला,
हमारे साफ दामन को मगर दागी बताता है ।
किसी को पक्ष रखने का कोई मौका नहीं देता,
सबूतों के बिना हर फैसला अपना सुनाता हैं।
रही है पीठ पीछे बात करने की उसे आदत,
नज़र के सामने आते ही नज़रों को चुराता है।
कभी जब होश खोता है तनिक भी जोश में आकर,
ज़रा सी भूल का वह क़र्ज़ जीवन भर चुकाता है।
महज़ बोते रहे हम भावना के बीज ऊसर में,
न उनमे फूल ही आते न कोई फल ही आता है।
बदी तो याद रखता है यहाँ इंसान बरसों तक,
मगर नेकी को 'भारद्वाज' पल भर में भुलाता है।
चंद्रभान भारद्वाज
7 comments:
बता कर कुछ न कुछ कमियाँ निगाहों से गिराता है;
ज़माना नेक नीयत पर भी अब ऊँगली उठाता है।
जानदार गजल!
महज़ बोते रहे हम भावना के बीज ऊसर में,
न उनमे फूल ही आते न कोई फल ही आता है।
वाकई, ये भावनाओं की खेती बाड़ी किसी काम की नहीं।
बदी तो याद रखता है यहाँ इंसान बरसों तक,
मगर नेकी को 'भारद्वाज' पल भर में भुलाता है।
मेरे लिये तो हर अश आर लाजवाब है किस किस की तारीफ करूँ । बधाई
BHARDWAJ JI NAMASKAAR,
MERI SABSE CHAHITI BAH'R PE AAPNE ITANI KHUBSURAT GAZAL KAHI HAI KE KYA KAHANE.... MATALAA KHUB BOL RAHAA HAI ....
महज़ बोते रहे हम भावना के बीज ऊसर में,
न उनमे फूल ही आते न कोई फल ही आता है।
AUR IS SHE'R NE MUJHE MERE GAON KE KUCHH BANJAR JAMEEN KEE YAAD DILAA DI
BADHAAYEE KUBULEN
ARSH
बता कर कुछ न कुछ कमियाँ निगाहों से गिराता है;
ज़माना नेक नीयत पर भी अब ऊँगली उठाता है।
-बहुत खूब!!
आपका कहा दर्शाता है कि आपने जिन्दगी को कितने करीब से देखा है। और फिर सीधे सपाट शब्दों में बिना लाग-लपेट के स्पष्ट अभिव्यक्ति, यही वो अशआर हैं जो पढ़ने सुनने वाले के जेह्न में बस जाते हैं। हार्दिक बधाई।
तिलक राज कपूर
आपका कहा दर्शाता है कि आपने जिन्दगी को कितने करीब से देखा है। और फिर सीधे सपाट शब्दों में बिना लाग-लपेट के स्पष्ट अभिव्यक्ति, यही वो अशआर हैं जो पढ़ने सुनने वाले के जेह्न में बस जाते हैं। हार्दिक बधाई।
तिलक राज कपूर
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