Sunday, April 12, 2009

ज्योति कैसे जलेगी जलाए बिना

दीप को वर्तिका से मिलाए बिना;
ज्योति कैसे जलेगी जलाए बिना।

स्वप्न आकार लेंगे भला किस तरह,
हौसलों को अगन में गलाए बिना।

ज़िन्दगी में चटक रंग कब भर सके,
सोये अरमान के कुलबुलाए बिना।

एक तारा कभी टूटता ही नहीं,
दूर आकाश में खिलखिलाए बिना।

प्यार का अर्थ आता समझ में नहीं,
आँख में अश्रु के छलछलाए बिना।

तुम इधर मौन हो वह उधर मौन है,
बात कैसे चलेगी चलाए बिना।

लाख परदे गिराकर रखो ओट में,
रूप रहता नहीं झिलमिलाए बिना।

शब्द के विष बुझे बाण जब भी चुभे,
कौन सा दिल बचा तिलमिलाए बिना।

वे बहारें 'भरद्वाज' किस काम की,
जो गईं फूल कोई खिलाए बिना।

चंद्रभान भारद्वाज

5 comments:

अनिल कान्त said...

aapki klaam mein jadu hai ...aapne baat bahut prabhavshali dhang se kahi hai

"अर्श" said...

AAPKI GAZALON KE BAARE ME MAIN KUCHH KAHUN TO KYA KAHUN EK ADANAA KYA KAHE ... JUBAAN SE BAS WAAH WAAH AUR AAPKI GAHARI SOCH KE BAARE ME SOCH KE HI BAS HATPRABH HOTA JAA RAHA HUN.. BAHOT HI KHUBSURAT GAZAL BAN PADI HAI AAPKE GAZALON KA TO MURID HUN MAIN... HAN APNE NAEE GAZAL PE AAPKA AASHIRVAAD CHAUNGA...


ARSH

निर्मला कपिला said...

स्वपन आकार लेंगे भला किस तरह
हौसलों को गलाये बिना
बहुत ही प्रेरनाप्रद है शुभकामनायेम्

गौतम राजऋषि said...

अनोखे रदीफ़ पे जबरदस्त ग़ज़ल सर

...और इस शेर ने दिल जीत लिया है "तुम इधर मौन हो वह उधर मौन है/बात कैसे चलेगी चलाए बिना"

वाह !!!

Anonymous said...

स्वप्न आकार लेगें भला किस तरह,
हौसलों को अगन में गलाए बिना।

ज़िन्दगी में चटक रंग कब भर सके,
सोये अरमान के कुलबुलाए बिना।

एक तारा कभी टूटता ही नहीं,
दूर आकाश में खिलखिलाए बिना।