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हंसों के मन में बेईमानी
घर कर गई है हंसों के मन में बेईमानी
करते नहीं अलग अब वे दूध और पानी
डाली जड़ों में जब से कुछ खाद यूरिया की
फूली तो है बहुत पर महके न रातरानी
कुछ डाल के वो पत्ते जो डाल से जुड़े हैं
आँधी की कोई धमकी उनने कभी न मानी
वैसे तो सब रियासत पहले ही मिट गई थीं
पैदा हुए नए अब कुछ राजा और रानी
बस जोड़ तोड़ का है अब खेल यह सियासत
गठबंधनों का अड्डा है आज राजधानी
जब बोझ हद से ज्यादा गाड़ी पे लद रहा हो
तो चाल होती धीमी या टूटती कमानी
हैं 'भारद्वाज ' ऐसे भी हीरे कुछ ग़ज़ल में
कल था न जिनका सानी अब भी न उनका सानी
चंद्रभान भारद्वाज
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