Sunday, February 10, 2013

नदी नाव जैसा है रिश्ता हमारा

कभी तो डुबाया कभी पर उबारा
नदी नाव जैसा है रिश्ता हमारा

कहीं गहरा पानी कहीं तेज धारा
समझते रहे थे जहाँ इक किनारा

रहा हमसफ़र जो रहा हम निवाला
उसी ने ही इस दिल में खंजर उतारा

जहाँ भी रही काठ की एक हांड़ी
चढ़ी है कहाँ आग पर वह दुबारा

बहाया समझ कर जिसे एक तिनका
वही बन गया डूबते को सहारा

रहा था सदा बख्शता ज़िन्दगी को 
मगर आज उसने ही बेमौत मारा

सिवा दर्द के और कुछ भी नहीं था
खुला जब थमी ज़िन्दगी का पिटारा

चमकता रहा जो अभी तक गगन में
वही आज डूबा हुआ है सितारा

हराता रहा था जिसे ज़िन्दगी भर
'भरद्वाज' उस से ही खुद  आज हारा

चंद्रभान भारद्वाज