Friday, July 26, 2019


                   हँसकर गुजर जाती

कभी रोकर गुजर जाती कभी हँसकर गुजर जाती
किसी के नाम से यदि ज़िंदगी जुड़कर गुजर जाती

नहीं स्वीकार करते यदि प्रणय प्रस्ताव वे अपना
उमर उनकी गली के काटकर चक्कर गुजर जाती

निगाहें खुद उठाकर सिर्फ हमको देख लेते वे
हमारी उम्र उनका नाम जप जप कर गुजर जाती  

इधर दुःख का कुआँ मिलता अभावों की उधर खाई
उमर उनमें बराबर संतुलन रखकर गुजर जाती

सुगम राहें नहीं मिलतीं सहज मंज़िल नहीं मिलती
उमर कँकरीली सब पगडंडियाँ चलकर गुजर जाती

नदी इक आग की पड़ती है प्रिय की राह में अक्सर
धधकती आग को यह ज़िंदगी पीकर गुजर जाती

अगर कठिनाइयों के ढीठ पर्बत रोकते राहें
मचलती ज़िंदगी हर इक शिखर चढ़कर गुजर जाती

सफर में सिर्फ चलती ज़िंदगी का नाम है गाड़ी
कहीं सरपट गुजर जाती कहीं रुककर  गुजर जाती

अँधेरों ने जिसे खुद आज 'भारद्वाज ' घेरा है
वही क्षितिजों पे अपना नाम चमकाकर गुजर जाती 

चंद्रभान भारद्वाज 


Friday, July 5, 2019

                  तपाओ तो सही

 ज़िंदगी को वक़्त की लौ पर तपाओ तो सही
आँच में रख प्राण को कुंदन बनाओ तो सही

एक दिन आकाश खुद आएगा धरती पर उतर
हौसलों को ऊँचे से ऊँचा उड़ाओ तो सही

हर्ष के अंकुर उगेंगे देह के हर रोम से
अपनी मिट्टी में लहू अपना मिलाओ तो सही

साफ़ दिख जाएगा इस दुनिया का चेहरा आपको
धूल अपने मन के दर्पण से हटाओ तो सही

दूर होगा एक क्षण में घुप अँधेरा राह का
आस का छोटा सा इक दीया जलाओ तो सही

रंग चटकीले लगेंगे प्रेम के विश्वास के
आँख से नफरत के सब परदे उठाओ तो सही

हर तरफ दिखने लगेगा सिर्फ 'भारद्वाज ' प्रिय
प्रेम सागर में तनिक डुबकी लगाओ तो सही

चंद्रभान भारद्वाज