Friday, August 24, 2018
Tuesday, August 14, 2018
जीने का मज़ा आने लगा
तन भी हरसाने लगा है मन भी हरसाने लगा
उसके आ जाने से जीने का मज़ा आने
जिस जगह पसरी हुई थीं हर तरफ खामोशियाँ
देख उसको घर का कोना कोना बतियाने लगा
एक पल भी एक युग जैसा लगा उसके बिना
संग उसके तो समय का ज्ञान बिसराने लगा
जब कभी उतरी है उसकी छवि हमारे ध्यान में
बंद आँखों में उजाला सा नज़र आने लगा
मिल गया जब खाद पानी उसके निर्मल प्यार का
प्राण का सूखा बगीचा सहसा हरयाने लगा
उसने जब से है चखाई बूटी अपने प्यार की
चढ़ गया उन्माद तन मन पर नशा छाने लगा
पा गए जीवन में परमानंद 'भारद्वाज़ 'हम
उसका जब आभास धीरे धीरे दुलराने लगा
चंद्रभान भारद्वाज
Saturday, August 11, 2018
दीवारें वहाँ ऊँची हुईं हैं
हमारे गाँव की गलियाँ भले पक्की हुईं हैं
मगर आँगन की दीवारें वहाँ ऊँची हुईं हैं
बँटे हैं लोग धर्मों जातियों की गोटियों में
लगा शतरंज की बस बाजियाँ पसरी हुईं हैं
वहाँ तक गैस बिजली नैट मोबाइल तो पहुचा
मगर अब दाल सब्जी रोटियाँ मँहगी हुईं हैं
नई पीढ़ी समझती ही नहीं है अपना रिश्ता
सभी के बीच रेखाऐं बहुत चौड़ी हुईं हैं
युवा नारी हो वृद्धा हो कि हो मासूम बच्ची
हुईं हैं या तो गुमसुम या डरी सहमी हुईं हैं
कभी आशीष देतीं थी जो सिर पर हाथ रख कर
सियासत ने वो चाची ताइयाँ बाँटी हुईं हैं
वो भारद्वाज निश्छलता वो भोलेपन की मूरत
सभी छवियाँ पुरानी आँख में धुँधली हुईं हैं
चंद्रभान भारद्वाज
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