Wednesday, August 25, 2010
पहले तो न थी
धुंध जो वातावरण में आज पहले तो न थी;
रोशनी की हर किरण रंगवाज पहले तो न थी।
लाँघ आई सरहदों को आदमी के नाम पर,
कुर्सियों की कैद में आवाज पहले तो न थी।
कर गई सारा शहर पल में हवाले आग के,
यह हवा इतनी करिश्मेबाज पहले तो न थी।
बांटती अपने लिए ख़ुद फूलमालाएं यहाँ,
मूर्ति वन्दनवार की मोहताज पहले तो न थी ।
कौन कब किसको बना लेगा निशाना क्या पता,
दाँव पर हर आदमी की लाज पहले तो न थी।
शर्त पहले ही रखी है ताज के निर्माण की,
बात ऐसी प्यार में मुमताज पहले तो न थी।
सेंकते जलती चिता पर लोग अपनी रोटियां,
ज़िन्दगी खुदगर्ज 'भारद्वाज' पहले तो न थी।
चंद्रभान भारद्वाज
Tuesday, August 10, 2010
सगाई टूट जाती है
उतरती है अँगूठी तो सगाई टूट जाती है
उतरतीं चूड़ियाँ तो इक कलाई टूट जाती है
किसी भी प्यार के अनुबंध में शर्तें नहीं होतीं
रखीं हों शर्त तो फिर आशनाई टूट जाती है
सहज विश्वास पर सहती समय के सब थपेड़ों को
मगर शक पर उमर भर की मिताई टूट जाती है
बुनाई में अगर डाले नहीं हों प्यार के फंदे
उलझती ऊन अक्सर या सलाई टूट जाती है
रुई अच्छी धुनी अच्छी भरी अच्छी सिली अच्छी
तगाई प्यार बिन हो तो रजाई टूट जाती है
समय के कठघरे में जब कभी देखा है दोनों को
तनी रहती बुराई पर भलाई टूट जाती है
बिखरता वो भी 'भारद्वाज' अक्सर टूट किरचों में
कभी तस्वीर जब उसकी बनाई अटूट जाती है
चंद्रभान भारद्वाज
उतरतीं चूड़ियाँ तो इक कलाई टूट जाती है
किसी भी प्यार के अनुबंध में शर्तें नहीं होतीं
रखीं हों शर्त तो फिर आशनाई टूट जाती है
सहज विश्वास पर सहती समय के सब थपेड़ों को
मगर शक पर उमर भर की मिताई टूट जाती है
बुनाई में अगर डाले नहीं हों प्यार के फंदे
उलझती ऊन अक्सर या सलाई टूट जाती है
रुई अच्छी धुनी अच्छी भरी अच्छी सिली अच्छी
तगाई प्यार बिन हो तो रजाई टूट जाती है
समय के कठघरे में जब कभी देखा है दोनों को
तनी रहती बुराई पर भलाई टूट जाती है
बिखरता वो भी 'भारद्वाज' अक्सर टूट किरचों में
कभी तस्वीर जब उसकी बनाई अटूट जाती है
चंद्रभान भारद्वाज
Sunday, August 1, 2010
अपनी निगाह को कभी ओछा नहीं किया
जिसको निभा सके न वह वादा नहीं किया
अपनी निगाह को कभी ओछा नहीं किया
गुजरे जहाँ से हम वहाँ मौसम बदल गया
हमने कभी हवाओं का पीछा नहीं किया
खुद ही बनाये रास्ते हर लीक तोड़ कर
अपने ज़मीर का कहीं सौदा नहीं किया
चादर हमारी इसलिए उजली रखी हुई
हमने गुनाह पर कोई परदा नहीं किया
सूली चढ़ा कभी कभी दीवार में चुना
सिर प्यार ने कभी मगर नीचा नहीं किया
वह शख्स जान पायेगा क्या दर्द भूख का
जिसने तमाम उम्र इक फाका नहीं किया
कुछ घाव 'भारद्वाज' बातों के भरे नहीं
हमने दवा के नाम पर क्या क्या नहीं किया
चंद्रभान भारद्वाज
अपनी निगाह को कभी ओछा नहीं किया
गुजरे जहाँ से हम वहाँ मौसम बदल गया
हमने कभी हवाओं का पीछा नहीं किया
खुद ही बनाये रास्ते हर लीक तोड़ कर
अपने ज़मीर का कहीं सौदा नहीं किया
चादर हमारी इसलिए उजली रखी हुई
हमने गुनाह पर कोई परदा नहीं किया
सूली चढ़ा कभी कभी दीवार में चुना
सिर प्यार ने कभी मगर नीचा नहीं किया
वह शख्स जान पायेगा क्या दर्द भूख का
जिसने तमाम उम्र इक फाका नहीं किया
कुछ घाव 'भारद्वाज' बातों के भरे नहीं
हमने दवा के नाम पर क्या क्या नहीं किया
चंद्रभान भारद्वाज
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