अमृत घड़ों की बात करते हैं
लिए विष के मगर अमृत घड़ों की बात करते हैं
भरे दुर्गंध से पर केवडों की बात करते हैं
बनाने के लिए बहुमंज़िला प्रासाद खुद अपने
गिराने के लिए बस झोपड़ों की बात करते हैं
विवश होकर ग़रीबी से हुईं हैं आत्महत्याएँ
वो पर थोथी प्रगति के आँकड़ों की बात करते हैं
अचर्चित बैंक से गुपचुप करोड़ों लूटने वाले
किसानों के मगर डूबे ऋणों की बात करते हैं
जिन्होने उम्र भर बस खिड़कियों के काँच फोड़े हैं
उन्हीं कुछ पत्थरों की कंकड़ों की बात करते हैं
जो कल तक दो समय की रोटियाँ गिनते रहे केवल
अभी लाखों करोड़ों सैकड़ों की बात करते हैं
जो आँधी के तनिक से वेग से होते धराशायी
वो धरती में जमी अपनी जड़ों की बात करते हैं
निकल कर मांद से बाहर कभी सागर नहीं देखा
वो वर्षा से भरे उथले गड़ों की बात करते हैं
कोई भी हौसला पर्वत के आगे झुक नहीं सकता
स्वयं जब हाथ गेँती फावडों की बात करते हैं
उभरते डाकुओं के चित्र अक्सर आँख के आगे
वो जब चम्बल के फैले बीहड़ों की बात करते हैं
नहीं मालूम 'भारद्वाज'' जिनको सभ्यता खुद की
हड़प्पा और मोहनजोदड़ों की बात करते हैं
चंद्रभान भारद्वाज
लिए विष के मगर अमृत घड़ों की बात करते हैं
भरे दुर्गंध से पर केवडों की बात करते हैं
बनाने के लिए बहुमंज़िला प्रासाद खुद अपने
गिराने के लिए बस झोपड़ों की बात करते हैं
विवश होकर ग़रीबी से हुईं हैं आत्महत्याएँ
वो पर थोथी प्रगति के आँकड़ों की बात करते हैं
अचर्चित बैंक से गुपचुप करोड़ों लूटने वाले
किसानों के मगर डूबे ऋणों की बात करते हैं
जिन्होने उम्र भर बस खिड़कियों के काँच फोड़े हैं
उन्हीं कुछ पत्थरों की कंकड़ों की बात करते हैं
जो कल तक दो समय की रोटियाँ गिनते रहे केवल
अभी लाखों करोड़ों सैकड़ों की बात करते हैं
जो आँधी के तनिक से वेग से होते धराशायी
वो धरती में जमी अपनी जड़ों की बात करते हैं
निकल कर मांद से बाहर कभी सागर नहीं देखा
वो वर्षा से भरे उथले गड़ों की बात करते हैं
कोई भी हौसला पर्वत के आगे झुक नहीं सकता
स्वयं जब हाथ गेँती फावडों की बात करते हैं
उभरते डाकुओं के चित्र अक्सर आँख के आगे
वो जब चम्बल के फैले बीहड़ों की बात करते हैं
नहीं मालूम 'भारद्वाज'' जिनको सभ्यता खुद की
हड़प्पा और मोहनजोदड़ों की बात करते हैं
चंद्रभान भारद्वाज
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