दीवारें वहाँ ऊँची हुईं हैं
हमारे गाँव की गलियाँ भले पक्की हुईं हैं
मगर आँगन की दीवारें वहाँ ऊँची हुईं हैं
बँटे हैं लोग धर्मों जातियों की गोटियों में
लगा शतरंज की बस बाजियाँ पसरी हुईं हैं
वहाँ तक गैस बिजली नैट मोबाइल तो पहुचा
मगर अब दाल सब्जी रोटियाँ मँहगी हुईं हैं
नई पीढ़ी समझती ही नहीं है अपना रिश्ता
सभी के बीच रेखाऐं बहुत चौड़ी हुईं हैं
युवा नारी हो वृद्धा हो कि हो मासूम बच्ची
हुईं हैं या तो गुमसुम या डरी सहमी हुईं हैं
कभी आशीष देतीं थी जो सिर पर हाथ रख कर
सियासत ने वो चाची ताइयाँ बाँटी हुईं हैं
वो भारद्वाज निश्छलता वो भोलेपन की मूरत
सभी छवियाँ पुरानी आँख में धुँधली हुईं हैं
चंद्रभान भारद्वाज
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