जीने का मज़ा आने लगा
तन भी हरसाने लगा है मन भी हरसाने लगा
उसके आ जाने से जीने का मज़ा आने
जिस जगह पसरी हुई थीं हर तरफ खामोशियाँ
देख उसको घर का कोना कोना बतियाने लगा
एक पल भी एक युग जैसा लगा उसके बिना
संग उसके तो समय का ज्ञान बिसराने लगा
जब कभी उतरी है उसकी छवि हमारे ध्यान में
बंद आँखों में उजाला सा नज़र आने लगा
मिल गया जब खाद पानी उसके निर्मल प्यार का
प्राण का सूखा बगीचा सहसा हरयाने लगा
उसने जब से है चखाई बूटी अपने प्यार की
चढ़ गया उन्माद तन मन पर नशा छाने लगा
पा गए जीवन में परमानंद 'भारद्वाज़ 'हम
उसका जब आभास धीरे धीरे दुलराने लगा
चंद्रभान भारद्वाज
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