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तपाओ तो सही
ज़िंदगी को वक़्त की लौ पर तपाओ तो सही
आँच में रख प्राण को कुंदन बनाओ तो सही
एक दिन आकाश खुद आएगा धरती पर उतर
हौसलों को ऊँचे से ऊँचा उड़ाओ तो सही
हर्ष के अंकुर उगेंगे देह के हर रोम से
अपनी मिट्टी में लहू अपना मिलाओ तो सही
साफ़ दिख जाएगा इस दुनिया का चेहरा आपको
धूल अपने मन के दर्पण से हटाओ तो सही
दूर होगा एक क्षण में घुप अँधेरा राह का
आस का छोटा सा इक दीया जलाओ तो सही
रंग चटकीले लगेंगे प्रेम के विश्वास के
आँख से नफरत के सब परदे उठाओ तो सही
हर तरफ दिखने लगेगा सिर्फ 'भारद्वाज ' प्रिय
प्रेम सागर में तनिक डुबकी लगाओ तो सही
चंद्रभान भारद्वाज
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