साँचों में ढलना आ गया है
जिसे साँचों में ढलना आ गया है
समय के संग चलना आ गया है
फँसेगा चक्रव्यूहों में नहीं अब
उसे बाहर निकलना आ गया है
चमकता ही रहेगा हर दिशा में
सतत दीपक सा जलना आ गया है
कहीं गाड़ी नहीं उसकी रुकेगी
सही पटरी बदलना आ गया है
जरुरत अब नहीं बैसाखियों की
कुलाँचें भर उछलना आ गया है
नए अंकुर उगें नस नस में उसकी
जिसे मिटटी में मिलना आ गया है
न उसकी नाव डूबेगी भँवर में
थपेड़ों में सँभलना आ गया है
गुलाबों में उसी की होती गिनती
जिसे काँटों में खिलना आ गया है
न 'भारद्वाज ' की हस्ती मिटेगी
उसे ग़ज़लों में ढलना आ गया है
चंद्रभान भारद्वाज
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