Friday, January 11, 2019
कभी मतला नहीं मिलता कभी मकता नहीं मिलता
खपाता जो उमर अपनी ग़ज़ल कहने में सुनने में
कभी मरने पे उसकी शायरी की क़द्र होती है
जहाँ परिवार में मिलती है शिक्षा संस्कारों की
मिलेगी गाँव में मक्के की रोटी साग सरसों का
यहाँ खुद आदमी का खून तो मिलता है सस्ते में
सदा उत्पात कर देता खड़ा शैतान बस्ती में
ठहाके मारकर हैवान तो फिरता है सडकों पर
किसी को तो नज़र मिलते ही 'भारद्वाज 'मिल जाता
चंद्रभान भारद्वाज
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