Thursday, October 18, 2018

जगमग जो शहर लगता है

रात में बिजली से जगमग जो शहर लगता है
उस के चेहरों पे तनावों का असर लगता है

लोग सहमे हुए लगते हैं जहाँ पग पग पर
सीना ताने हुए  शैतान निडर लगता है

वक्त ने ऐसा अविश्वास किया है पैदा
आप को खुद की भी परछाँई से डर लगता है

साँस लेना भी सुबह शाम हुआ है मुश्किल
बस धुआँ धूल का हर ओर कहर लगता है

लूट दुष्कर्म कि हत्याओं की घटनाओं से
रोज अखबार का हर पृष्ठ ही तर लगता है

वक़्त के संग यहाँ लोग बदलते रंगत
जो सुबह लगता इधर शाम उधर लगता है 

शख्स जो रोज नया पहने मुखौटा फिरता
वो जिधर से भी गुजर जाए खबर लगता है 

पथ्य बीमार को देते हैं समझ कर अमृत
वो पहुँचते ही शिराओं में जहर लगता है

बाद मुद्दत के भरद्वाज चढ़ा जब चौखट
द्वार अपना सा लगा अपना सा घर  लगता है

चंद्रभान भारद्वाज


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