Thursday, July 9, 2020

           फलता प्यार नहीं मिलता 

छल छंदों के बलबूते दिलदार नहीं मिलता 
नफरत के पौधों पर फलता प्यार नहीं मिलता 

जिस पर दर्प झलकता रहता हरदम ताकत का  
ऐसे चेहरे को आदर सत्कार नहीं मिलता 

नित्य सजाए रखना पड़ता उनको पलकों पर 
जब तक अपने सपनों को आकार नहीं मिलता 

क्या अंतर रहता सधवा या विधवा जीवन में 
यदि मन को खुशियाँ तन को श्रंगार नहीं मिलता 

आँखें करके बंद दिखाई देता वह हमको 
किंतु खुली आँखों से वह साकार नहीं मिलता 

बिन माँगे दुनिया की दौलत आती कदमों में 
माँगे से मुट्ठी भर आटा यार नहीं मिलता 

तोड़ दिए बंधन तो वह पीछे पीछे आया 
उसके पीछे भगने से संसार नहीं मिलता 

पौध लगाई पानी सींचा खाद दिया फिर भी 
पेड़ कहीं मरुथल में छायादार नहीं मिलता  

भारद्वाज अकिंचन लगता वैभव जीवन का 
माँ के आँचल का यदि लाड़ दुलार नहीं मिलता 

चंद्रभान भारद्वाज 


भाई इक़बाल बशर जी नमस्कार
सम्मानीय पत्रिका अर्बाबे क़लम में प्रकाशनार्थ अपनी एक ग़ज़ल भेज रहा हँ यदि उचित प्रतीत हो तो प्रकाशित करने की कृपा करें आशा है आप स्वस्थ और सानंद होंगे
चंद्रभान भारद्वाज
 672 साईं कृपा काॅलोनी
बाॅम्बे हास्पीटल के पास इंदौर म प्र 452010
मोबाइल 09826025016

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