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दूसरों की बात लिख
आप-बीती छोड़ कर कुछ दूसरों की बात लिख
सो रहे फुटपाथ पर उन बेघरों की बात लिख
अब तलक लिखते रहे हो राजमहलों की कथा
निर्धनों की झोंपडी की छप्परों की बात लिख
घोषणा ही घोषणाएं हो रहीं हर मंच से
मिल नहीं पाए कभी उन अवसरों की बात लिख
डाल कर दाने फँसाया पंछियों को जाल में
अब कतर डाले सभी के उन परों की बात लिख
छोड़ कर जनहित लगे हैं बस स्वहित को साधने
धर्म की उन मस्जिदों की मंदिरों की बात लिख
जो गहन गंभीर मुद्दों को भी हलके ले रहे
आज के उन मसखरों उन जोकरों की बात लिख
उच्च शिखरों पर जड़े उन पर लिखा तो क्या लिखा
नींव के नीचे गड़े उन पत्थरों की बात लिख
बाँध कर मुट्ठी बनाते जो कबूतर धूल से
उन जमूरों और उन जादूगरों की बात लिख
अब तलक लिखते रहे हो बस अँधेरे पक्ष को
आज 'भरद्वाज़ उजले अक्षरों की बात लिख
चंद्रभान भारद्वाज
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