Monday, December 30, 2019
सरल सा हल नहीं मिलता
जगत को बाँटने में रिक्त की गंगाजली जिसने
यहाँ जब माँगते हैं धूप तो उगता नहीं सूरज
मियां क्यों छानते हो खाक नाहक़ उस इमारत में
कहीं इफरात के कारण अपच से पेट रोगी है
किसी ने फाड़ कर टुकड़ा कभी बाँधा था घावों पर
मिलन की आस में जब बैठती श्रृंगार करने वो
अधजली लाश भारद्वाज बिन पहचान रह जाती
Wednesday, November 6, 2019
ग़ज़ल
प्राणों का तप्त सूरज पहुँचा ढलान पर है
चाहों का पंछी लेकिन ऊँची उड़ान पर है
सोने का उनका पिंजड़ा तिनकों का नीड़ अपना
अस्तित्व अपना हर पल अब इम्तिहान पर है
पैदा जहाँ हुआ था पाला गया जहाँ था
महलों से गर्व ज्यादा कच्चे मकान पर है
जो चोटियों पे चढ़कर अब आसमान छूते
उनकी निगाह अब भी मेरे मचान पर है
काटी उन्होंने सबसे पहले ज़बान मेरी
अपराध सिद्ध करना मुझ बेज़बान पर है
अब तक भी आँख मछली की बेध वे न पाए
यों तीर उनका अब तक रक्खा कमान पर है
पत्थर को वक़्त ने क्या हीरा बना दिया है
यह भारद्वाज सब कुछ विधि के विधान पर है
चंद्रभान भारद्वाज
सोने का उनका पिंजड़ा तिनकों का नीड़ अपना
अस्तित्व अपना हर पल अब इम्तिहान पर है महलों से गर्व ज्यादा कच्चे मकान पर है
काटी उन्होंने सबसे पहले ज़बान मेरी
अब तक भी आँख मछली की बेध वे न पाए
पत्थर को वक़्त ने क्या हीरा बना दिया है
Thursday, September 19, 2019
वाहवाही भी यहाँ
है गरीबी भी यहाँ तो राजशाही भी यहाँ
आह होठों पर रही तो वाहवाही भी यहाँ
इक तरफ उँगली के इक संकेत पर सुविधा सभी
इक तरफ जीवन को पग पग पर तबाही भी यहाँ
बोलने का और लिखने का तो हक़ है आपको
कुर्सियों की पर खिलाफत की मनाही भी यहाँ
देखने में लग रहा है इक बड़ा जनतंत्र है
अनदिखी लेकिन रही है तानाशाही भी यहाँ
सत्य फाँसी पर टँगा है इक गवाही के बिना
झूठ ने लेकिन खरीदी हर गवाही भी यहाँ
कर वसूली का प्रजा से राज्य को अधिकार है
नोंक पर बंदूक की होती उगाही भी यहाँ
खेल कर खुद जान पर कुछ कर्म अपना कर रहे
और कुछ कर्तव्य में करते कोताही भी यहाँ
ज़िंदगी में रोप जाना एक पौधा प्यार का
छाँह में ठहरे जहाँ पंछी भी राही भी यहाँ
देह 'भारद्वाज ' इक दिन पंचतत्वों में मिले
आत्मा की रहती है पर आवाजाही भी यहाँ
चंद्रभान भारद्वाज
Friday, August 30, 2019
बदलती अचानक दिशा जब हवा भी
बदलती अचानक दिशा जब हवा भी
बिना बरसे उड़ती उमड़ती घटा भी
न जाने किया कौन सा जुर्म उसने
न मिलती रिहाई न मिलती सजा भी
कदम लाँघ आए हैं जब देहरी को
दिखी अपनी मंजिल दिखा रास्ता भी
जो कर कर के नेकी बहाता नदी में
उमर भर वही शख्स फूला फला भी
विषय प्रेम का एक अदभुत विषय है
स्वयं रोग भी है स्वयं ही दवा भी
मिली डाक में प्रेम-पाती भी ऐसी
न प्रेषक लिखा था न उसका पता भी
जता व्यस्तता वो 'भरद्वाज ' अपनी
ढली रात आया था तड़के गया भी
चंद्रभान भारद्वाज
Tuesday, August 27, 2019
दिल अगर फूल सा नहीं होता
दिल अगर फूल सा नहीं होता,
प्यार में यूँ दिया नहीं होता।
प्यार की लौ सदा जली रहती,
भले दीया जला नहीं होता।
एक सौदा है सिर्फ़ घाटे का,
प्यार में कुछ नफा नहीं होता।
रात करवट बदल गुजरती है,
दिन का कुछ सिलसिला नहीं होता।
ज़िन्दगी भागती ही फिरती है,
प्यार का घर बसा नहीं होता।
लोग सदियों की बात करते हैं,
एक पल का पता नहीं होता।
पहले हर बात का भारोसा था,
अब किसी बात का नहीं होता।
प्यार का हर धडा बराबर है,
कोई छोटा बड़ा नहीं होता।
पूरी लगती न 'भारद्वाज' ग़ज़ल,
प्यार जब तक रमा नहीं होता।
चंद्रभान भारद्वाज
Sunday, August 25, 2019
परिचय एवं फोटो
नाम- चंद्रभान भारद्वाज
जन्म - ४, जनवरी , १९३८।
स्थान- गोंमत (अलीगढ) (उ प्र।)
अभी तक मेरे छः ग़ज़ल संग्रह तथा एक मुक्तक संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। (१) पगडंडियाँ (२)शीशे की किरचें (३)चिनगारियाँ(४)हवा आवाज़ देती है. (५)हथेली पर अँगारे तथा (६) उजाले क्या अँधेरे (ग़ज़ल संग्रह ) (७) प्रणय-शतक (मुक्तक संग्रह ) तथा पाँच संग्रहों में गज़लें सम्मिलित हैं।
देश की विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में गज़लें प्रकाशित होती रहीं हैं। आकाशवाणी से भी रचनाओं
का प्रसारण होता रहा है। १९७० से अनवरत रूप से ग़ज़ल लेखन में संलग्न हूँ।
Sunday, August 18, 2019
प्रणय-शतक
प्रणय-शतक
(१)
मेरे दिल को धडकना सिखाती रही ,
मेरे सपनों को उड़ना सिखाती रही ;
मैं तो अनजान था प्यार से वो मगर ,
प्यार का पाठ पढ़ना सिखाती रही ।
(२)
आज वह मेरे मन का विषय बन गई,
आज वह मेरे मन का विषय बन गई,
मेरे चिंतन मनन का विषय बन गई;
प्यार की एक पुस्तक सी मन में लिखी,
वह गहन अध्ययन का विषय बन गई।
(३)
प्यार की एक पुस्तक सी मन में लिखी,
वह गहन अध्ययन का विषय बन गई।
(३)
एक मूरत बनाकर सजाया उसे ,
मन के मन्दिर में लाकर बिठाया उसे ;
आरती प्यार की रोज करता हूँ अब,
आँख देखें जिधर सिर्फ़ पाया उसे ।
आरती प्यार की रोज करता हूँ अब,
आँख देखें जिधर सिर्फ़ पाया उसे ।
(४)
प्यार हर एक चाहत को मिलता नहीं,
प्यार हर एक हसरत को मिलता नहीं;
प्यार को उसने मुझ पर लुटाया सदा ,
प्यार हर एक किस्मत को मिलता नही
प्यार हर एक चाहत को मिलता नहीं,
प्यार हर एक हसरत को मिलता नहीं;
प्यार को उसने मुझ पर लुटाया सदा ,
प्यार हर एक किस्मत को मिलता नही
(५)
मैं अकेला खड़ा था कहीं राह में,
बन के पत्थर पड़ा था कहीं राह में;
उसने आकर समेटी मेरी ज़िंदगी
मैं तो बिखरा पड़ा था कहीं राह में,
(६)
उसकी यादों को मोती बनाता रहा ,
अपने दिल में उन्हें फ़िर सजाता रहा ;
उसकी आंखों से आँसू जहाँ भी गिरे,
अपनी पलकों से उनको उठाता रहा।
अपने दिल में उन्हें फ़िर सजाता रहा ;
उसकी आंखों से आँसू जहाँ भी गिरे,
अपनी पलकों से उनको उठाता रहा।
(७)
उसकी आवाज थी जिंदगी कल मेरी,
बाँका अंदाज थी जिंदगी कल मेरी;
गर्व उस पर बहुत यार करते हैं हम,
उससे सरताज थी जिंदगी कल मेरी।
(८)
गम की दुनिया में वह इक खुशी बन गई,
एक पल में मेरी ज़िन्दगी बन गई;
झाँकती मेरी आंखों में उसकी ही छवि ,
मेरे जीवन की वह रोशनी बन गई।
(9)
फूल बन कर सुबह गुदगुदाती थी वह,
ओस बनकर सुबह नित भिगाती थी वह;
खुद हवाओं से खुशबू चुराकर सुबह,
गंध बन कर मुझी में समाती थी वह.
(१०)
दर्द सीने में अपने छिपाता रहा,
रात दिन स्वप्न उसके सजाता रहा;
कोई काँटा न पाँवों में उसके चुभे ,
दर्द सीने में अपने छिपाता रहा,
रात दिन स्वप्न उसके सजाता रहा;
कोई काँटा न पाँवों में उसके चुभे ,
उसकी राहों में दिल को बिछाता रहा।
(११)
रात दिन वह ख़यालों में आती रही ,
मेरी साँसों में प्राणों में छाती रही ;
मेरे अरमान सोये पड़े थे कहीं,
बन के सपने उन्हें फिर जगाती रही।
(१२)
जिदगी जबसे मेरी अकेली हुई,
पीर ही सिर्फ़ उसकी सहेली हुई;
उसके जाने से दुनिया ही उजड़ी मेरी,
ज़िन्दगी फिर न दुल्हन नवेली हुई।
(११)
रात दिन वह ख़यालों में आती रही ,
मेरी साँसों में प्राणों में छाती रही ;
मेरे अरमान सोये पड़े थे कहीं,
बन के सपने उन्हें फिर जगाती रही।
(१२)
जिदगी जबसे मेरी अकेली हुई,
पीर ही सिर्फ़ उसकी सहेली हुई;
उसके जाने से दुनिया ही उजड़ी मेरी,
ज़िन्दगी फिर न दुल्हन नवेली हुई।
(१३)
चाँदनी रात भी अब अँधेरी लगे,
ज़िंदगी राख की एक ढेरी लगे ;
राह में साथ छोड़ा था उसने जहाँ ,
बस वहाँ से ही दुनिया लुटेरी लगे।
(१४)
पीर से मेरे प्राणों की शादी हुई,
ज़िन्दगी बस अंधेरों की आदी हुई,
उसकी नज़रों ने जब से हुआ दूर हूँ ,
ज़िन्दगी मेरी काँटों की वादी हुई।
(१५)
उसको शायद नहीं कोई अंदाज था ,
वह मेरा प्यार जिस पर मुझे नाज था ;
नाम से उसके जब नाम मेरा जुडा,
मेरी तकदीर का सर का वह ताज था।
ज़िंदगी राख की एक ढेरी लगे ;
राह में साथ छोड़ा था उसने जहाँ ,
बस वहाँ से ही दुनिया लुटेरी लगे।
(१४)
पीर से मेरे प्राणों की शादी हुई,
ज़िन्दगी बस अंधेरों की आदी हुई,
उसकी नज़रों ने जब से हुआ दूर हूँ ,
ज़िन्दगी मेरी काँटों की वादी हुई।
(१५)
उसको शायद नहीं कोई अंदाज था ,
वह मेरा प्यार जिस पर मुझे नाज था ;
नाम से उसके जब नाम मेरा जुडा,
मेरी तकदीर का सर का वह ताज था।
(१६ )
रिश्ते यादों के सब तोड़ आया हूँ अब,
हर घरोंदा स्वयं फोड़ आया हूँ अब
ज़िंदगी में जहाँ भेँट उससे हुई;
वह गली और घर छोड़ आया हूँ अब.
(१७)
मन के उपवन में थी वह महकती कली,
मन के आँगन में थी वह चहकती कली;
मेरे जीवन में वह प्राण की डाल पर,
थी महकती चहकती लचकती कली.
(१८)
मेरी बाँहों में वह मेरी चाहों में वह,
मेरी मंजिल में वह मेरी राहों में वह;
मेरे तन मन में वह मेरी नस नस में वह,
मेरे प्राणों में वह मेरी आहों में वह ।
(१९)
राह मेरी न जाने कहाँ मुड गई,
दिन का सुख रात की नीद भी उड़ गई;
वक्त लाकर खड़ा कर गया है कहाँ,
पीर से सहसा अब ज़िन्दगी जुड़ गई।
(२०)
मेरी धड़कन मेरी जिंदगानी थी वह,
मेरे दिल पर लिखी इक कहानी थी वह;
मेरी हर साँस पर राज करती थी वह,
मेरे सपनों की इक राजधानी थी वह ।
(२१)
मेरी सब प्रार्थनाएं थीं उसके लिए,
मेरी सब भावनाएं थीं उसके लिए;
मैंने जीवन समर्पित उसे कर दिया,
मेरी सब कामनाएं थीं उसके लिए।
(२२)
मेरा घर द्वार थी मेरा संसार थी,
मेरे हर एक सपने की हक़दार थी;
मन के मन्दिर में हर मूर्ति उसकी बनी,
मेरी पूजा थी वह, वह मेरा प्यार थी ।
(२३)
मेरे भीगे हुए नैन पहले न थे,
मेरे सिसके हुए बैन पहले न थे;
हर तरफ आज बेचैनियों से घिरा,
प्राण सच ऐसे बेचैन पहले न थे।
(२४)
मेरे हालात उस से छिपे तो न थे,
मेरे जजबात उस से छिपे तो न थे;
कैसे तन मन संभालूँगा उसके बिना,
यह सवालात उस से छिपे तो न थे ।
(२५)
उसके हाथों में मेंहदी लगाता रहा,
उसके कदमों में कलियाँ बिछाता रहा;
बन के खुशबू हवाओं में घुलता रहा,
उसकी साँसों को चंदन बनाता रहा ।
(२६)
मेरी नज़रों में परियों की रानी थी वह,
प्यार की एक सुंदर कहानी थी वह;
अपनी लहरों में मुझको बहा ले गई,
चढ़ती सरिता की चंचल रवानी थी वह ।
(२७)
मुझ को अच्छी तरह पूरा अहसास था,
वह थी मेरी ख़ुशी मेरा उल्लास था;
इस ज़माने से मुझ को न लेना था कुछ,
संग उसका ही मेरे लिए खास था
(२८)
मेरे हाथों की अनमिट लकीरों में वह,
मेरे प्राणों के अनगिन जखीरों में वह;
बाँध कर जिनमें रक्खा हुआ है मुझे,
प्यार की अनदिखी उन जँजीरों में वह ।
(२९)
जन्म जन्मों का ज्यों एक रिश्ता थी वह,
मेरी नज़रों में कोई फ़रिश्ता थी वह;
कच्चे धागे में बांधा हुआ था मगर,
प्यार का पक्का गठ जोड़ रिश्ता थी वह ।
(३०)
ज़िंदगी मेरी पहले थी बहकी हुई,
वह मिली तो लगी राह चहकी हुई;
उसकी नज़रों ने जब से छुआ था मुझे,
मेरी हर साँस लगती थी महकी हुई।
(३१)
मेरी बाँहों में दुनिया सिमटने लगी,
बीच दोनों के जब दूरी घटने लगी;
पाठ कैसा पढ़ा कर गई वह मुझे,
ज़िन्दगी नाम उसका ही रटने लगी।
(३२)
वह अंधेरे में मेरा उजारा बनी,
जब थका राह में तो सहारा बनी,
पाँव जब भी भटकने लगे राह में,
दे दिशा ज्ञान नभ का सितारा बनी।
(३३)
दुःख के वातावरण में खुशी मिल गई,
अंधी आँखों को ज्यों रोशनी मिल गई;
द्वार पर मौत आकर खड़ी थी मेरे,
वह मिली तो नई ज़िन्दगी मिल गई।
(३४)
उसकी यादों का इक सिलसिला मिल गया,
मेरे सपनों को इक काफिला मिल गया;
बंद धड़कन जगा दी है उसने मेरी,
प्यार का ऐसा अद्भुत सिला मिल गया।
(३५)
मेरे एकाकी जीवन की थी मीत वह ,
मेरी सुनसान राहों का थी गीत वह;
जब भी बैठा कभी हार कर ज़िंदगी,
मेरे हारे हुए मन की थी जीत वह ।
(३६)
अपना मालूम अच्छी तरह कद मुझे,
अपनी मालूम अच्छी तरह हद मुझे;
उसकी यादें ही कमजोर करती मुझे,
उसकी यादें ही करती हैं गदगद मुझे ।
(३७)
मेरा मकसद थी वह मेरी मंजिल थी वह,
मेरे जीवन के कन कन में शामिल थी वह;
मेरे सीने में हर दम धड़कता है जो,
मेरा नाज़ुक सा मासूम सा दिल थी वह ।
(३८)
बन के साँसों में खुशबू महकती रही,
बन के कानों में सरगम सी बजती रही;
मैं रखूँ खोल कर या रखूँ बंद मै,
आँख में उसकी सूरत चमकती रही।
(३९)
मेरे सपनों में छाई है उसकी हँसी,
मेरे दिल में समाई है उसकी हँसी;
मेरी आँखों के आँसू भी थमते नहीं,
याद जब जब भी आई है उसकी हँसी।
(४०)
पहले मेरा कहीं भी ठिकाना न था,
कोई सपनों का इक आशियाना न था;
वह मिली तो लगा ज़िंदगी मिल गई,
वरना जीने का कोई बहाना न था।
(४१)
मेरे सपनों के संसार में वह रही,
मेरी यादों के आगार में वह रही;
मैंने मन की तहों में सहेजा सदा,
ज़िन्दगी भर मेरे प्यार में वह रही ।
(४२)
मुझ को दुनिया के आचार जमते नहीं,
भाव मन के कहीं और रमते नहीं;
उसकी यादों में जब भी विचरता है मन,
मेरे आँसू भी आंखों में थमते नहीं।
(४३)
जागता मैं रहा या कि सोता रहा,
उसकी यादों में हर वक्त खोता रहा;
एक हलचल सदा मन को मथती रही,
बस अकेले-अकेले ही रोता रहा।
(४४)
प्यार की जब ग़ज़ल कोई पढ़ता हूँ मैं,
मन में मूरत सदा उसकी गढ़ता हूँ मैं;
उसकी तस्वीर मन में सुरक्षित रहे,
भावनाओं के शीशे में मढ़ता हूं मैं।
(४५)
उसका अहसास दिल से निकलता नहीं,
लाख समझाया पर दिल बहलता नहीं;
हार कर दिल से बैठा हुआ आज मैं,
मेरा दिल मुझ से बिल्कुल सँभलता नहीं।
(४६)
अपनी बेचैनियाँ मैं बताऊँ किसे,
दिल में तूफ़ान उठता दिखाऊँ किसे;
छोड़ कर मुझ को मझधार में वह गई,
यह अधूरी कहानी सुनाऊँ किसे।
(४७)
छोड़ आया हूँ संसार का रास्ता,
भूल बैठा हूँ मैं प्यार का रास्ता;
ऐसा लगता है मुझको बुलाती है वह ,
ढूँढता उसके घर-द्वार का रास्ता।
(४८)
उसकी खुशबू घुली मेरी साँसों में है,
उसका सपना बसा मेरी आँखों में है;
वो जो बन कर रही थी मेरी ज़िन्दगी,
उसकी सूरत रमी मेरे प्राणों में है ।
(४९)
उसकी छवि के सिवा कुछ दिखाई न दे,
उसके स्वर के सिवा कुछ सुनाई न दे;
उसके दामन से लगता हूँ लिपटा हुआ ,
मुझ को उस के सिवा कुछ सुझाई न दे।
(५०)
हर सुबह याद उसकी जगाती मुझे,
रात को याद उसकी सुलाती मुझे;
मुझको बेचैनियों ने रखा घेर कर,
हर समय याद उसकी सताती मुझे।
(५१)
मेरे प्राणों की वो ही हवा थी कभी ,
ज़िंदगी अब अधूरी सवा थी कभी ;
सालते जो रहे ज़िन्दगी भर मुझे,
रिसते घावों की वह ही दवा थी कभी।
(५२)
उसका चेहरा नज़र में समाया हुआ,
मेरा मन उसके रँग में नहाया हुआ;
भूल पाता नहीं एक पल भी उसे,
उसका ऐसा नशा मुझ पे छाया हुआ।
(५३)
देखता है सुबह को न अब शाम को,
रटता रहता है मन उसके बस नाम को;
हद से बढ़ने लगी इसकी दीवानगी,
झेलूँ कब तक बता इसके परिणाम को।
(५४)
बहके कदमों को मेरे सहारा थी वह,
डूबती नाव को इक किनारा थी वह
मेरे जीवन को उसने दिशा दी सदा,
मन के मरुथल में कल कल सी धारा थी वह ।
(५५)
मेरे मन में बसीं उसकी परछाइयाँ,
मेरी साँसों में बजती थीं शहनाइयाँ;
मेरी सूनी निगाहों में फैली हैं अब,
उसके बिन हर तरफ़ सिर्फ़ तन्हाइयां।
(५६)
उसकी यादों से दिन की शुरूआत है,
उसके सपनों में गुज़रे हरिक रात है;
मेरा तन मन रमा उसके ही ध्यान में,
मेरे प्राणों को वह एक सौगात है ।
(५७)
घूमता है कभी पागलों की तरह,
झूमता है कभी बादलों की तरह;
उसकी यादों में बेचैन है इतना दिल,
आह भरता है बस घायलों की तरह।
(५८)
मेरे मन को सदा गुदगुदाती थी वह,
मेरे मन पर लिखी प्रेम पाती थी वह;
उसने जीवन मेरा रोशनी से भरा,
प्रेम दीपक की इक जलती बाती थी वह ।
(५९)
एक मूरत गढ़ी उसकी अब नेह की,
उसमें खुशबू भरी उसकी अब देह की;
उसकी यादें भिगोती हैं कुछ इस तरह,
जैसे बूँदें भिगोतीं हमें मेह की।
(६०)
मेरा सपना थी वह मेरी चाहत थी वह,
मेरी कमजोरी थी मेरी ताकत थी वह;
उस को पाकर बहुत गर्व करता था मैं,
मेरा ईमान थी मेरी इज्जत थी वह ।
(६१)
मेरी नज़रों में वह एक कोमल कली,
धूप में ही खिली धूप में ही पली;
छाँह बन कर सदा साथ में वह रही ,
उससे महकी सदा मेरे मन की गली।
(६२)
उसकी तसवीर में रंग भरता रहा,
उसकी आँखों में गहरे उतरता रहा;
उसको मालूम था या नहीं क्या पता,
चुपके चुपके उसे प्यार करता रहा।
(६३)
खुशबू बन मेरे तन पर बिखरती रही,
बन के सपना पलक पर उतरती रही;
रात दिन उसकी चाहत रही थी यही,
मेरे आँचल को खुशियों से भरती रही ।
(६४)
उसकी खशबू यहाँ उसकी खुशबू वहाँ,
पर दिखाई न देती छुपी है जहाँ;
कोई इतना पता तो बता दे मुझे,
अपनी आँखों से उसको निहारूं कहाँ ।
(६५)
सूर्य की हर किरण रोशनी दे उसे,
हर सुबह इक नई ज़िन्दगी दे उसे;
उसके दामन में खुशियाँ समांयें नहीं,
मेरा सतसांई इतनी खुशी दे उसे ।
(६६)
मैं न समझा कि संसार क्या चीज है,
इसके इस पार उस पार क्या चीज है;
वह मिली तब से ही मैं समझने लगा ,
ज़िंदगी के लिए प्यार क्या चीज है।
(६७)
दर्द रह रह के उठता है दिल में मेरे,
इक धुंआ सा घुमड़ता है दिल में मेरे;
साँस रूकती मेरी दम निकलता मेरा,
ख्याल उसका उमड़ता है दिल में मेरे।
(६८)
मेरी हर आस थी मेरा उल्लास थी,
वह मेरी आस्था मेरा विश्वास थी ;
सारे डूबे सितारे चमकने लगे,
जब से जीवन में आई अनायास थी ।
(६९)
कोई रिश्ता कभी जोड़ पाना कठिन
कोई रिश्ता कभी तोड़ पाना कठिन
मन का मन से हुआ ऐसा गठजोड़ था
पीछे कदमों को था मोड़ पाना कठिन
(७०)
जब से मन में मेरे उसकी चाहत जगी,
हद से बढ़ने लगी मेरी दीवानगी;
मुझ को उसके सिवा कुछ दिखाई न दे,
उसकी यादें बनीं हैं मेरी जिंदगी।
(७१)
मेरे मन के उजालों में रहती है वह,
मेरे मन के शिवालों में रहती है वह;
हाल अपने हृदय का बताऊँ किसे,
मेरे हरदम खयालों में रहती है वह ।
(७२)
डाल से टूटे पत्ते सा उड़ना पडा,
मुझ को मिलने से पहले बिछुड़ना पड़ा;
प्यार में वह सजा दी गई है मुझे,
मुझ को दहके अँगारों से जुड़ना पड़ा।
(७३)
मेरी आँखों को सपना दिखा कर गई,
मेरी साँसों को चलना सिखाकर गई;
मैं तो बैठा था चुपचाप थक हार कर,
प्यार की पर सुधा वह पिला कर गई ।
(७४)
मेरी शोहरत थी वह मेरी इज्जत थी वह,
मेरे जीवन की हर इक जरूरत थी वह ;
मेरे हाथों की अनमिट लकीरों में थी,
विधि ने जो खुद लिखी मेरी किस्मत थी वह ।
(७५)
यों कटेंगे सुबह शाम सोचा न था,
ज़िंदगी होगी गुमनाम सोचा न था;
दिल की बेचैनियाँ हद से बढ़ने लगीं,
प्यार का ऐसा अंजाम सोचा न था।
(७६)
दीप का रोशनी से जो रिश्ता रहा,
चाँद का चाँदनी से जो रिश्ता रहा;
उसका रिश्ता रहा मुझ से ऐसा सदा,
प्राण का ज़िंदगी से जो रिश्ता रहा।
(७७)
वह मिली तो डगर में उजाले हुए,
मेरे जीवन के रँग ढँग निराले हुए;
देख कर उस को साकार होने लगे,
मैंने आँखों में सपने जो पाले हुए।
(७८)
मेरे होठों पे वह एक मुस्कान थी,
मेरी आँखों में सपनों का प्रतिमान थी;
मेरे प्राणों में हर वक्त बजती हुई,
कोई संगीत की वह मधुर तान थी ।
(७९)
उसके होठों की मुस्कान कितनी भली,
ओस में जैसे भीगी हो कोई कली;
उसकी खुशबू से हर पल महकती रही,
मेरे तन की डगर मेरे मन की गली।
(८०)
रात दिन याद उसकी सताती है अब,
इक उदासी सुबह शाम छाती है अब;
मेरे कानों में बस गूँजते उसके स्वर,
जैसे आवाज़ दे कर बुलाती है अब ।
(८१)
राह में हाथ में हाथ उसका रहा,
धूप में छाँह में साथ उसका रहा,
मैंने जो भी शिखर ज़िंदगी में छुआ,
पीठ पर मेरी बस हाथ उसका रहा ।
(८२)
उसकी हिम्मत पे मुझ को भरोसा रहा,
उसकी ताकत पे मुझ को भरोसा रहा;
जब तलक ज़िंदगी में रही साथ वह,
मेरी किस्मत पे मुझ को भरोसा रहा ।
(८३)
मेरे तन में है वह मेरे मन में है वह,
मेरे जीवन जगत के है कन कन में वह;
मैं जिधर देखता हूँ वही दीखती ,
मेरी धरती में मेरे गगन में है वह ।
(८४)
खून बन कर शिराओं में बहती है वह,
रात भर मेरे सपनों को तहती है वह;
बंद कर आँख मैं देख लेता उसे,
मेरे मन के झरोखों में रहती है वह ।
(८५)
साथ रहतीं हैं अब मेरी तन्हाइयाँ,
झाँकतीं उसकी यादों की परछाइयाँ;
मैं अकेले में महसूस करता हूँ अब,
उसकी सच्चाइयाँ, उसकी अच्छाइयाँ।
(८६)
दिन निकलते ही अब याद आती है वह,
शाम ढलते ही अब याद आती है वह;
मेरी नस नस में उसकी हैं यादें बसीं,
दीप जलते ही अब याद आती है वह।
(८७)
मेरे हालात को अब समझना कठिन,
मेरे ज़ज़बात को अब समझना कठिन;
एक पल भी न हटती मेरे दिल से वह,
मेरी इस बात को अब समझना कठिन।
(८८)
उसकी यादें ही अब दिल का आधार हैं,
जोड़ते जो मुझे उससे वो तार हैं;
आँसुओं में डुबोकर कलम ने लिखे,
मेरे पिघले ह्रदय के ये उदगार हैं ।
(८९)
मेरा तन मन थी वह मेरा जीवन थी वह,
मेरा दर्शन थी वह मेरा चिंतन थी वह ;
मेरे हर अध्ययन का विषय बन गई ,
मेरा अस्तित्व थी दिल की धड़कन थी वह ।
(९०)
चाहता मन कि वह साथ बैठी रहे,
डाल कर हाथ में हाथ बैठी रहे;
खेलती ही रहे मेरे बालों से वह,
गोद में ले मेरा माथ बैठी रहे ।
(९१)
मेरे मन पर बनी इक राँगोली थी वह,
मेरे माथे का चंदन थी रोली थी वह;
जग की हर बदनज़र से बचाकर रखा,
वो बहुत सीधी थी और भोली थी वह।
(९२)
मेरा उसका ये रिश्ता नहीं टूटता,
संग मेरा व उसका नहीं छूटता;
तन थे दो मन मगर एक रहते सदा,
मुझसे मेरा अगर प्रभु नहीं रूठता ।
(९३)
याद उसकी कभी है रुलाती मुझे,
याद उसकी कभी फ़िर हँसाती मुझे;
मेरा हर रोम महसूस करता उसे,
वह छकाती मुझे गुदगुदाती मुझे।
(९४)
याद उसकी मेरे दिल से जाती नहीं,
नीद अब मेरी आँखों में आती नहीं;
रात करवट बदल कर गुजरती मेरी,
दिन में चर्चा किसी की सुहाती नहीं।
(९५)
वह मेरी प्रेरणा मेरा उत्साह थी,
मन में जागी हुई इक नई चाह थी;
बन गई ज़िन्दगी इक सुहाना सफर,
जब से आकर बनी मेरी हमराह थी ।
(९६)
दिन गुजरता नहीं रात कटती नहीं,
याद उसकी मेरे दिल से हटती नहीं;
मेरे तन मन में है सिर्फ़ उसकी लगन,
प्यास मिटती नहीं आस घटती नहीं।
(९७)
उसके प्राणों की कीमत समझता था मैं,
उसके आँसू की इज्जत समझता था मैं;
उसके बिन ज़िन्दगी मेरी कुछ भी नहीं,
उसकी संगति की ताकत समझता था मैं।
(९८)
याद जाती नहीं नींद आती नहीं,
बात दुनिया की कोई भी भाती नहीं;
जिसमें होता नहीं जिक्र उसका कोई,
ऐसी चर्चा मुझे अब सुहाती नहीं।
(९९)
बात का कोई भी हल सुझाई न दे,
राह आगे की कोई दिखाई न दे;
होने लगता है बेचैन क्यों मेरा दिल,
उसकी आवाज़ जब से सुनाई न दे।
(१००)
मुझ पे छाई है बन एक उन्माद वह,
मेरी नस नस में है सिर्फ़ आबाद वह;
याद आता नहीं है कभी कोई पल,
जिसमें आई नहीं है मुझे याद वह ।
,
चंद्रभान भारद्वाज
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