ज़िन्दगी इक प्रश्न भी है ज़िन्दगी उत्तर भी है
फल कहीं वरदान का शापित कहीं पत्थर भी है
है गुनाहों और दागों से भरा दामन कहीं
पर कहीं दरगाह की इक रेशमी चादर भी है
लग नहीं पाता किसी सूरत से सीरत का पता
तह पे तह बाहर भी उसके तह पे तह भीतर भी है
ज़िन्दगी खुद ही जुआ है खुद लगी है दाँव पर
खुद शकुनि है खुद ही पासे और खुद चौसर भी है
फब्तियाँ मक्कारियाँ चालाकियाँ बेशर्मियाँ
आजकल की ज़िन्दगी बिग बॉस जैसा घर भी है
करना परिभाषित कठिन है ज़िन्दगी का फलसफा
बूँद सी छोटी भी है गहरा महासागर भी है
झाँकती अट्टालिकाओं के झरोखों से कहीं
पर कहीं फुटपाथ पर बेबस भी है बेघर भी है
है ज़माने के निठुर हाथों की कठपुतली कभी
पर कभी सीने पे उसके रेंगता अजगर भी है
चल रहा है लाद 'भारद्वाज' कंधों पर जिसे
पुण्य की है पोटली तो पाप का गट्ठर भी है
चंद्रभान भारद्वाज
फल कहीं वरदान का शापित कहीं पत्थर भी है
है गुनाहों और दागों से भरा दामन कहीं
पर कहीं दरगाह की इक रेशमी चादर भी है
लग नहीं पाता किसी सूरत से सीरत का पता
तह पे तह बाहर भी उसके तह पे तह भीतर भी है
ज़िन्दगी खुद ही जुआ है खुद लगी है दाँव पर
खुद शकुनि है खुद ही पासे और खुद चौसर भी है
फब्तियाँ मक्कारियाँ चालाकियाँ बेशर्मियाँ
आजकल की ज़िन्दगी बिग बॉस जैसा घर भी है
करना परिभाषित कठिन है ज़िन्दगी का फलसफा
बूँद सी छोटी भी है गहरा महासागर भी है
झाँकती अट्टालिकाओं के झरोखों से कहीं
पर कहीं फुटपाथ पर बेबस भी है बेघर भी है
है ज़माने के निठुर हाथों की कठपुतली कभी
पर कभी सीने पे उसके रेंगता अजगर भी है
चल रहा है लाद 'भारद्वाज' कंधों पर जिसे
पुण्य की है पोटली तो पाप का गट्ठर भी है
चंद्रभान भारद्वाज
5 comments:
बेहतरीन लिखा है,
♥
आदरणीय चंद्रभान भारद्वाज जी
सादर प्रणाम !
बहुत शानदार और जानदार हमेशा की तरह-
लग नहीं पाता किसी सूरत से सीरत का पता
तह पे तह बाहर भी उसके तह पे तह भीतर भी है
क्या बात है !
ज़िन्दगी खुद ही जुआ है खुद लगी है दाँव पर
खुद शकुनि है खुद ही पासे और खुद चौसर भी है
जवाब नहीं सर ! सैल्यूट !!
फब्तियाँ मक्कारियाँ चालाकियाँ बेशर्मियाँ
आजकल की ज़िन्दगी बिग बॉस जैसा घर भी है
आहाऽऽहऽऽ… ! मेरे मन की बात कहदी …
काश ! बेशर्मों से नई पौध को बचाया जा सके …
चल रहा है लाद 'भारद्वाज' कंधों पर जिसे
पुण्य की है पोटली तो पाप का गट्ठर भी है
आपकी ग़ज़लों के जादू से बाहर निकलना मुश्किल होता है -
जितना भी कहूंगा , फिर भी शेष रह जाएगा …
आप लिखते रहें , हम पढ़ते रहें ।
बहुत बहुत बहुत मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
Bhai Rajendra ji,
Apki tippadiyon ke liye bahut bahut dhanywaad,bahut protsahan milta hai Abhari hoon.
वैसे तो हर शेर लाज़वाब है........
मगर ये शेर दिल को छू गए......
ज़िन्दगी खुद ही जुआ है खुद लगी है दाँव पर
खुद शकुनि है खुद ही पासे और खुद चौसर भी है
है गुनाहों और दागों से भरा दामन कहीं
पर कहीं दरगाह की इक रेशमी चादर भी है
फब्तियाँ मक्कारियाँ चालाकियाँ बेशर्मियाँ
आजकल की ज़िन्दगी बिग बॉस जैसा घर भी है
झाँकती अट्टालिकाओं के झरोखों से कहीं
पर कहीं फुटपाथ पर बेबस भी है बेघर भी है
भरद्वाज जी फुटपाथ के साथ ये राबता अच्छा लगा.....!
ज़िन्दगी खुद ही जुआ है खुद लगी है दाँव पर
खुद शकुनि है खुद ही पासे और खुद चौसर भी है
Khoob Kaha....
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