उतरती है अँगूठी तो सगाई टूट जाती है
उतरतीं चूड़ियाँ तो इक कलाई टूट जाती है
किसी भी प्यार के अनुबंध में शर्तें नहीं होतीं
रखीं हों शर्त तो फिर आशनाई टूट जाती है
सहज विश्वास पर सहती समय के सब थपेड़ों को
मगर शक पर उमर भर की मिताई टूट जाती है
बुनाई में अगर डाले नहीं हों प्यार के फंदे
उलझती ऊन अक्सर या सलाई टूट जाती है
रुई अच्छी धुनी अच्छी भरी अच्छी सिली अच्छी
तगाई प्यार बिन हो तो रजाई टूट जाती है
समय के कठघरे में जब कभी देखा है दोनों को
तनी रहती बुराई पर भलाई टूट जाती है
बिखरता वो भी 'भारद्वाज' अक्सर टूट किरचों में
कभी तस्वीर जब उसकी बनाई अटूट जाती है
चंद्रभान भारद्वाज
Tuesday, August 10, 2010
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4 comments:
bahut badhiya ghazal/shayeri. ....badhai...
समय के कठघरे में जब कभी देखा है दोनों को
तनी रहती बुराई पर भलाई टूट जाती है
एक सच्चा शेर
सुंदर ग़ज़ल
बुनाई में अगर डाले नहीं हों प्यार के फंदे
उलझती ऊन अक्सर या सलाई टूट जाती है...
वाह....वाह
भारद्वाज जी...
कितने खूबसूरत तरीके से बुना है ये शेर...
समय के कठघरे में जब कभी देखा है दोनों को
तनी रहती बुराई पर भलाई टूट जाती है....
हक़ीक़त बयान करता हुआ शेर.
समय के कठघरे में जब कभी देखा है दोनों को
तनी रहती बुराई पर भलाई टूट जाती है
बहुत बढ़िया गज़ल...
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